सजग गिलहरी और शरारती बंदर: जब समझदारी ने शरारत को हराया! (The Clever Squirrel and the Mischievous Monkey: When Wisdom Defeated Mischief!)
भाग 1: जंगल का रंगीन संसार
किसी समय की बात है, एक घने और विशाल जंगल में तरह-तरह के जीव-जन्तु रहते थे। ऊँचे-ऊँचे पेड़, मीठे फलों की बेलें, रंग-बिरंगे फूलों से महकती टहनियाँ और हरियाली से भरा वह जंगल किसी स्वर्ग से कम नहीं था।
इस हरे-भरे जंगल में एक छोटी-सी लेकिन बहुत चंचल गिलहरी रहती थी, जिसका नाम चंपा था। वह बहुत मेहनती थी और हमेशा अपने काम में लगी रहती थी। चंपा का घोंसला जंगल के सबसे ऊँचे पेड़ की ऊँची शाखा पर बना था, जहाँ से वह पूरे जंगल का नज़ारा देख सकती थी।
चंपा दिन भर उछल-कूद करती, इधर-उधर भागती, और मेहनत से अपने लिए मेवे और फल इकट्ठा करती। वह जानती थी कि बारिश के मौसम में भोजन मिलना कठिन हो सकता है, इसलिए वह पहले से ही खूब मेहनत कर अपनी जरूरतों का सामान जमा कर लेती थी। उसकी इस आदत से बाकी जंगल के जानवर भी उसकी तारीफ किया करते थे।
भाग 2: बंदरों की शरारत और मोंटू की जलन
उसी जंगल में कुछ शरारती बंदर भी रहते थे। वे दिनभर इधर-उधर उधम मचाते, फल तोड़ते और दूसरे जानवरों को परेशान करते। इन बंदरों का सरदार था मोंटू, जो सबसे ज्यादा शरारती और चालाक था।
मोंटू को चंपा की मेहनत से बहुत जलन होती थी। वह देखता था कि चंपा कितनी मेहनत करके अपने लिए खाना इकट्ठा करती है, और उसे यह बात बिल्कुल पसंद नहीं थी। उसे लगता था कि मेहनत करने से अच्छा है कि दूसरों का खाना चुरा लिया जाए।
एक दिन मोंटू ने ठान लिया कि वह चंपा के घोंसले में जाकर सारे मेवे चुरा लेगा और उसे बेघर कर देगा। "अगर चंपा का घोंसला ही नहीं रहेगा, तो वह इस जंगल में ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगी," मोंटू ने सोचा।
भाग 3: मोंटू की चाल और चंपा की समझदारी
एक सुबह जब चंपा जंगल में अपने लिए खाना इकट्ठा करने गई, तो मोंटू को सुनहरा मौका मिल गया। वह पेड़ों पर छलांग लगाते हुए सीधा चंपा के घोंसले तक पहुंचा।
जैसे ही उसने घोंसले में झांका, उसकी आँखें चमक उठीं! अंदर ढेर सारे काजू, बादाम, अखरोट और रसीले फल रखे थे। मोंटू ने खुशी-खुशी अपने हाथ बढ़ाए और मेवे समेटने लगा। लेकिन जैसे ही उसने पहला मुट्ठी भरा, अचानक— "धप्प!"
मोंटू चौंक गया! उसने महसूस किया कि उसके पैर किसी चीज़ में उलझ गए हैं। उसने इधर-उधर देखा, तो समझ आया कि वह एक जाल में फंस चुका था!
दरअसल, चंपा बहुत समझदार थी। वह जानती थी कि जंगल में शरारती बंदर रहते हैं, इसलिए उसने पहले से ही अपने घोंसले के पास एक जाल बिछा रखा था। जैसे ही कोई चोर वहां घुसता, वह जाल में फंस जाता!
भाग 4: मोंटू की फजीहत और सीख
अब मोंटू खुद अपने ही जाल में फंस चुका था। उसने छटपटाना शुरू किया, लेकिन जितना निकलने की कोशिश करता, जाल उतना ही कसता चला गया।
"अरे कोई बचाओ! मैं फंस गया हूँ!" मोंटू चिल्लाने लगा।
थोड़ी देर में चंपा वापस आई। उसने देखा कि मोंटू जाल में फंसा है और जोर-जोर से चिल्ला रहा है। चंपा मुस्कुराई और बोली, "तो मोंटू, तुम मेरी मेहनत का फल चुराने आए थे? अब देखो, कैसे खुद ही फंस गए!"
मोंटू को अपनी गलती का एहसास हो गया। वह चंपा से गिड़गिड़ाने लगा, "मुझे छोड़ दो, चंपा! मैं अब कभी चोरी नहीं करूंगा, मैं वादा करता हूँ!"
चंपा ने थोड़ी देर सोचा, फिर बोली, "अगर तुम सच में सुधरने का वादा करते हो और अब किसी को परेशान नहीं करोगे, तो मैं तुम्हें छोड़ सकती हूँ। लेकिन अगर फिर से शरारत की, तो पूरा जंगल तुम्हें सबक सिखाएगा!"
मोंटू ने तुरंत सिर हिलाया, "हाँ-हाँ, मैं अब कभी किसी को परेशान नहीं करूंगा।"
चंपा ने जाल खोल दिया, और मोंटू आज़ाद हो गया। वह शर्मिंदा होकर वहाँ से भागा और अपने दोस्तों को सारी बात बताई। इसके बाद, मोंटू ने सच में अपनी आदतें बदल दीं। वह शरारत छोड़कर जंगल के बाकी जानवरों की मदद करने लगा।
अब चंपा और मोंटू अच्छे दोस्त बन गए थे। मोंटू को समझ आ गया था कि जलन और शरारत से कुछ नहीं मिलता, बल्कि मेहनत और ईमानदारी से ही सच्ची खुशी मिलती है।
शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि –
✅ मेहनत और ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं होता।
✅ जलन और शरारत से कभी भी सही परिणाम नहीं मिलते।
✅ समझदारी से किसी भी परेशानी का हल निकाला जा सकता है।
✅ दूसरों का हक छीनने की बजाय, खुद मेहनत करके आगे बढ़ना ही असली सफलता है।
"जो मेहनत करता है, वह सुखी रहता है, और जो दूसरों की चीज़ें छीनता है, उसे हमेशा पछताना पड़ता है!"
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