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बगुले और केकड़े की कहानी - Bagule aur Kakde ki kahani - Panchatantra ki Kahani

बगुले और केकड़े की कहानी - Bagule aur Kakde ki kahani - Panchatantra ki Kahani

बगुले और केकड़े की कहानी - The Crane and the Crab - Panchtantra ki Kahani 

बगुला भगत और केकड़ा की कहानी

भूमिका

पंचतंत्र की कहानियाँ हमेशा जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर आधारित होती हैं। ये कहानियाँ हमें नैतिकता, चतुराई और जीवन की सच्चाइयों से अवगत कराती हैं। "बगुला भगत और केकड़ा" की कहानी एक ऐसी ही कथा है, जो धूर्तता, चालाकी और उसके परिणामों पर आधारित है। इस कहानी में एक बगुले की चालाकी और एक केकड़े की बुद्धिमानी के बीच की टकराव को दिखाया गया है।

भूखा बगुला

एक बार की बात है, एक बगुला एक तालाब के किनारे रहता था। तालाब में मछलियों की भरमार थी, और बगुला आराम से उन्हें खाकर अपनी भूख मिटा लेता था। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, बगुले की उम्र बढ़ती गई और वह पहले की तरह मछलियाँ पकड़ने में सक्षम नहीं रहा। उसकी चालाकी और धैर्य भी कम हो गया, और वह अक्सर भूखा ही रह जाता था।

बगुला बहुत परेशान था और सोच रहा था कि अब वह किस प्रकार अपना पेट भरे। उसके मन में एक योजना आई। उसने सोचा कि अगर वह तालाब में रहने वाले जीवों को धोखे से फंसा सके, तो वह आराम से खाना पा सकता है।

बगुला भगत का छल

बगुले ने एक दिन तालाब के किनारे उदास बैठकर आंसू बहाने का नाटक करना शुरू कर दिया। तालाब में रहने वाली मछलियाँ, मेंढक और अन्य जीव उसकी ओर हैरानी से देखने लगे। उन्होंने बगुले से पूछा, "तुम इतने उदास क्यों हो, बगुले? क्या हुआ?"

बगुला अपनी आवाज में दुख का भाव लाकर बोला, "भाईयों, मैं इस तालाब के सभी जीवों का बहुत भला चाहता हूँ। लेकिन मुझे यह देखकर बहुत दुख होता है कि कुछ ही दिनों में इस तालाब का पानी सूख जाएगा और तुम सब मारे जाओगे।"

यह सुनकर सभी जीव चिंतित हो गए और बगुले से उपाय पूछने लगे। बगुले ने अपनी योजना के तहत कहा, "मैं तुम सबको बचाना चाहता हूँ। इस तालाब से कुछ दूरी पर एक और तालाब है, जहां हमेशा पानी भरा रहता है। मैं तुम सबको वहां ले जा सकता हूँ, लेकिन इसके लिए मुझे तुम पर भरोसा करना होगा।"

मछलियों का विश्वास

बगुले की बातों पर विश्वास करते हुए मछलियों और अन्य जीवों ने उससे कहा, "बगुले भगत, अगर तुम हमें बचा सकते हो, तो हम तुम्हारे साथ जाने के लिए तैयार हैं। कृपया हमें इस मुसीबत से निकालो।"

बगुला खुशी से मुस्कराया और बोला, "ठीक है, मैं हर दिन एक-एक करके तुम्हें उस तालाब तक ले जाऊंगा।" बगुले ने अपनी योजना को अंजाम देना शुरू किया। वह हर दिन एक मछली को अपनी चोंच में उठाता और उड़कर तालाब के किनारे एक चट्टान पर जाकर उसे खा जाता था। फिर वह वापस आकर बाकी जीवों से कहता कि उसने मछली को सुरक्षित तालाब में छोड़ दिया है।

केकड़े की बुद्धिमानी

कई दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा। बगुला आराम से मछलियाँ खाता रहा और तालाब के जीवों को धोखा देता रहा। लेकिन एक दिन, एक केकड़ा भी बगुले के पास आया और बोला, "बगुले भगत, अब मेरी बारी है। कृपया मुझे भी उस सुरक्षित तालाब तक पहुँचा दो।"

बगुला मन ही मन बहुत खुश हुआ, क्योंकि उसने सोचा कि केकड़ा उसके लिए स्वादिष्ट भोजन साबित होगा। उसने केकड़े को अपनी चोंच में पकड़ने के बजाय अपनी पीठ पर बैठा लिया और उड़ने लगा। केकड़ा बगुले की पीठ पर बैठकर चारों ओर देख रहा था।

जैसे ही बगुला चट्टान के पास पहुँचा, केकड़े ने नीचे की ओर देखा और वहाँ मछलियों की हड्डियों का ढेर देखा। केकड़े को तुरंत समझ में आ गया कि बगुला उन्हें धोखा दे रहा है और मछलियों को खा रहा है। उसने बिना कोई समय गंवाए, अपने नुकीले पंजों से बगुले की गर्दन को कसकर पकड़ लिया और कहा, "अगर तुमने मुझे धोखा देने की कोशिश की, तो मैं तुम्हारी गर्दन काट दूंगा। मुझे तुरंत उस सुरक्षित तालाब तक ले चलो, अन्यथा तुम्हारी मौत निश्चित है।"

बगुले का अंत

बगुला केकड़े की पकड़ से घबरा गया। उसे समझ में आ गया कि उसकी चालाकी अब काम नहीं आएगी। उसने केकड़े से माफी मांगते हुए कहा, "केकड़ा भाई, मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हें धोखा नहीं दूंगा। मैं तुम्हें तुरंत उस तालाब तक पहुंचा दूंगा। कृपया मेरी जान बख्श दो।"

लेकिन केकड़ा अब बगुले पर भरोसा नहीं कर सकता था। उसने अपने पंजों से बगुले की गर्दन काट दी और बगुला मर गया। केकड़ा सुरक्षित वापस तालाब में लौट आया और बाकी जीवों को बगुले की चालाकी के बारे में बताया।

नैतिक शिक्षा

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि छल और धोखे का परिणाम हमेशा बुरा होता है। बगुले ने अपनी चालाकी से मछलियों को धोखा दिया, लेकिन उसकी चालाकी उसे केकड़े के सामने नहीं बचा पाई। केकड़े की बुद्धिमानी ने बगुले की सारी चालाकी को विफल कर दिया। इस कहानी से यह भी सिखाया जाता है कि हमें हर परिस्थिति में धैर्य और समझदारी से काम लेना चाहिए, और दूसरों के साथ छल-कपट नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष

"बगुला भगत और केकड़ा" की यह कहानी जीवन में ईमानदारी, धैर्य और समझदारी की महत्व को उजागर करती है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि दूसरों के साथ छल-कपट करना स्वयं के लिए घातक हो सकता है। जीवन में सत्य और ईमानदारी के मार्ग पर चलना ही सबसे सही रास्ता है।



The Story of the Cunning Crane and the Wise Crab - Panchatantra Story in English

The Story of the Cunning Crane and the Wise Crab

Introduction: 

The stories of the Panchatantra have always been centered on important aspects of life. These tales teach us about morality, cleverness, and the realities of life. "The Cunning Crane and the Wise Crab" is one such story that revolves around deceit, cleverness, and their consequences. It showcases the conflict between the crane's cunningness and the crab's wisdom.

The Hungry Crane:

Once upon a time, there lived a crane by the side of a pond. The pond was teeming with fish, and the crane easily satisfied its hunger by eating them. But as time passed, the crane grew older and was no longer as capable of catching fish as it used to be. Its agility and patience waned, and it often went hungry.

The crane was deeply troubled and wondered how it would continue to feed itself. Then, an idea struck its mind. It thought that if it could deceive the creatures living in the pond, it could easily get its food without much effort.

The Crane's Deceit: 

One day, the crane sat sadly by the edge of the pond, pretending to cry. The fish, frogs, and other creatures in the pond noticed the crane's sorrowful appearance and asked, "Why are you so sad, Crane? What happened?"

The crane, feigning a voice full of sorrow, replied, "My dear friends, I care deeply for all the creatures in this pond. But it breaks my heart to see that this pond will dry up in a few days, and you all will perish."

Hearing this, all the creatures became worried and asked the crane for a solution. The crane, following its plan, said, "I want to save you all. There is another pond not far from here, which is always full of water. I can take you there, but you must trust me."

The Fish's Trust: 

Believing the crane's words, the fish and other creatures said, "Dear Crane, if you can save us, we are ready to go with you. Please help us escape this danger."

The crane smiled with delight and said, "Alright, I will take you to the new pond one by one each day." The crane then began to execute its plan. Every day, it would pick up a fish in its beak, fly to a rock by the pond, and eat it. Then it would return and tell the other creatures that it had safely deposited the fish in the new pond.

The Crab's Wisdom: 

This continued for several days. The crane happily feasted on the fish while deceiving the pond's creatures. But one day, a crab approached the crane and said, "Dear Crane, now it's my turn. Please take me to that safe pond as well."

The crane was secretly overjoyed, thinking that the crab would make a delicious meal. Instead of holding the crab in its beak, the crane placed it on its back and began to fly. The crab, sitting on the crane's back, was observing everything around it.

As soon as the crane reached the rock, the crab looked down and saw a pile of fish bones. The crab immediately realized that the crane had been deceiving them and eating the fish. Without wasting any time, the crab used its sharp claws to grasp the crane's neck tightly and said, "If you try to deceive me, I will cut off your neck. Take me to that safe pond immediately, or your death is certain."

The Crane's End: 

The crane was terrified by the crab's firm grip. It realized that its cunning plan had failed. The crane, begging for forgiveness, said, "Dear Crab, please forgive me. I will not deceive you. I will take you to the safe pond right away. Please spare my life."

But the crab could no longer trust the crane. It tightened its grip and cut off the crane's neck, killing it. The crab then safely returned to the pond and informed the other creatures about the crane's deceit.

Moral of the Story: 

This story teaches us that deceit and trickery always lead to negative consequences. The crane's cunning plan to deceive the fish ultimately led to its demise at the hands of the wise crab. The crab's wisdom overcame the crane's deceit. The story also emphasizes that we should always act with patience and understanding in every situation and should never resort to deceit.

Conclusion: 

"The Cunning Crane and the Wise Crab" is a story that highlights the importance of honesty, patience, and wisdom in life. It teaches us that deceiving others can lead to our downfall. Walking the path of truth and honesty is the best way to live life.

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