ब्राह्मणी और तिल के बीज - The Brahmani and the Sesame Seeds - A Story from Panchatantra
ब्राह्मणी और तिल के बीज - पंचतंत्र की कहानी (मित्रलाभ खंड)
अतिथि का आगमन और चिंता
एक गाँव में एक निर्धन ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहता था। भिक्षा मांगकर वह जैसे-तैसे अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाता था। एक दिन उसके घर कुछ अतिथि आ गए। अतिथि आगमन से ब्राह्मण की पत्नी, ब्राह्मणी, चिंतित हो गई क्योंकि घर में खाने-पीने का कोई सामान नहीं था। उसने ब्राह्मण को यह समस्या बताई।
ब्राह्मण ने कहा, “मैं पड़ोस के गाँव में भिक्षा मांगने जा रहा हूँ। कल कर्क-संक्रांति है, और एक ब्राह्मण सूर्यदेव की उपासना के लिए कुछ दान देगा। तब तक तुम्हें थोड़ा धैर्य रखना होगा।”
पत्नी ने दुखी होकर कहा, “मैंने तुमसे विवाह किया, परंतु जीवन में कोई सुख नहीं देखा। आज भी मैं भूखी हूँ और अतिथि के सामने लज्जित हूँ। क्या जीवन मिला है मुझे?”
ब्राह्मण ने उसे समझाते हुए कहा, “देवी, तुम क्यों इतना दुखी हो रही हो? पेट की भूख मिटाने जितना अन्न मैं भिक्षा में ला ही देता हूँ। तृष्णा में फंसना ठीक नहीं है। अति-तृष्णा मनुष्य को हानि पहुँचाती है, जैसे शिकारी और गीदड़ की कहानी में हुआ।”
शिकारी, सूअर और गीदड़ की कथा
ब्राह्मण ने उसे एक पुरानी कथा सुनाई:
"एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार की खोज में भटक रहा था। उसे एक बड़ा काला सूअर दिखा। शिकारी ने तीर से सूअर पर निशाना साधा और उसे घायल कर दिया। घायल सूअर शिकारी की ओर दौड़ा और अपने तीखे दांत शिकारी के पेट में गाड़ दिए। शिकारी और सूअर दोनों मर गए।
कुछ देर बाद एक गीदड़ वहाँ से गुजरा। दोनों मरे हुए शरीरों को देख उसकी लालच बढ़ गई। उसने सोचा, ‘यह तो बिना मेहनत का भोजन है, मुझे इसे सोच-समझकर खाना चाहिए ताकि यह भोजन कई दिनों तक चले।’
सबसे पहले गीदड़ ने शिकारी के धनुष की डोरी खाने का निश्चय किया। जैसे ही उसने डोरी को चबाया, धनुष की प्रत्यंचा टूट गई और धनुष का सिरा गीदड़ के माथे में धंस गया। गीदड़ भी वहीं मर गया।"
कहानी सुनाने के बाद ब्राह्मण ने कहा, “इसलिए अति-लालच से बचना चाहिए। इससे अंत में हानि ही होती है।”
तिल के बीज और समस्या
ब्राह्मणी ने कहा, “तुम ठीक कहते हो। मुझे अपनी चिंता नहीं, लेकिन घर पर आए अतिथि के लिए भोजन चाहिए। ऐसा करती हूँ कि घर में पड़े तिलों को कूटकर उसे भोजन बना देती हूँ।”
ब्राह्मण ने सहमति दी और भिक्षा मांगने के लिए पड़ोस के गाँव चला गया। ब्राह्मणी ने घर में रखे तिल निकाले, उन्हें साफ किया और धूप में सुखाने के लिए रख दिया। कुछ देर बाद, एक कुत्ता वहाँ आया और उसने उन तिलों को मूत्र और विष्ठा से गंदा कर दिया।
तिलों की अदला-बदली की योजना
यह देख ब्राह्मणी की चिंता और बढ़ गई। उसने सोचा, “अब मैं इन अशुद्ध तिलों को अतिथि को कैसे खिला सकती हूँ? क्यों न मैं गाँव में जाकर इन तिलों के बदले किसी से अच्छे तिल ले आऊं? कोई तो मुझे अशोधित तिल देगा, उसे यह नहीं पता चलेगा कि ये तिल गंदे हैं।”
यह सोचकर वह तिलों को छाज में रखकर गाँव में निकल गई। वह घर-घर जाकर आवाज लगाने लगी, “बिना छने हुए तिलों के बदले छने हुए तिल ले लो।”
व्यापारी का ज्ञान
कई घरों के बाद वह एक घर पहुंची। उस घर की स्त्री तिलों का सौदा करने के लिए तैयार हो गई। तभी उसका पुत्र, जो अर्थशास्त्र का ज्ञाता था, आ गया। उसने अपनी माँ को सावधान किया, “माँ, इस सौदे में कुछ गड़बड़ है। कौन बिना किसी कारण अच्छे तिलों के बदले अशोधित तिल देगा? अवश्य इन तिलों में कुछ दोष है।”
पुत्र की बात सुनकर स्त्री ने तिलों का सौदा करने से मना कर दिया। ब्राह्मणी अपने गंदे तिल लेकर घर लौट आई और अपनी गलती पर पछताने लगी।
नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि किसी भी परिस्थिति में धैर्य और ईमानदारी से काम लेना चाहिए। अपनी समस्या को छल-कपट से हल करने की कोशिश करने से परिणाम हमेशा विपरीत होते हैं। धोखे से लाभ प्राप्त करने की इच्छा अंततः हानिकारक ही होती है।
ब्राह्मणी और तिल के बीज - The Brahmani and the Sesame Seeds - A Story from Panchatantra (Mitra-Labh Section)
The Brahmani and the Sesame Seeds - A Story from Panchatantra - A Story from Panchatantra (Mitra-Labh Section)
The Arrival of Guests and Worry
In a village, a poor Brahmin lived with his family. He barely managed to provide for them by begging for alms. One day, a few guests arrived at their home. The Brahmin’s wife, the Brahmani, became anxious because they had no food in the house. She expressed her concern to the Brahmin.
The Brahmin said, "I am going to the neighboring village to beg for alms. Tomorrow is Karka-Sankranti, and a Brahmin is likely to offer some donations in worship to the Sun God. Until then, be patient."
The wife, upset, replied, "I married you, but I have seen no joy in life. Today, I am hungry and ashamed in front of our guests. What kind of life is this?"
The Brahmin consoled her, saying, "Why are you so distressed, my dear? I bring home enough alms to fill our bellies. It is not right to be trapped by greed. Excessive desire leads to harm, just like in the story of the hunter and the jackal."
The Story of the Hunter, the Boar, and the Jackal
The Brahmin narrated an old story to his wife:
"Once, a hunter was wandering through the forest in search of prey. He spotted a large black boar and shot it with an arrow, wounding it. The injured boar charged at the hunter and gored him with its sharp tusks. Both the hunter and the boar died.
After some time, a jackal passed by. Seeing the two dead bodies, his greed increased. He thought, 'This is a feast without effort; I should eat it carefully so that it lasts for several days.'
The jackal decided to start by eating the hunter’s bowstring. As soon as he chewed through the string, the bow snapped, and its end struck the jackal in the head, killing him too."
After telling the story, the Brahmin said, "That’s why one should avoid excessive greed. In the end, it only leads to loss."
The Sesame Seeds and the Problem
The Brahmani agreed and said, "You are right. I am not worried for myself, but we must provide food for the guests. I will take the sesame seeds we have at home and prepare a meal for them."
The Brahmin approved and went to the neighboring village to beg for alms. The Brahmani took out the sesame seeds, cleaned them, and set them out to dry in the sun. After some time, a dog came by and soiled the sesame seeds with its urine and feces.
The Plan to Exchange the Sesame Seeds
Seeing this, the Brahmani’s worry grew. She thought, "How can I serve these impure sesame seeds to our guests? Why don’t I go to the village and exchange them with someone for clean sesame seeds? No one will know these are dirty."
With this plan in mind, she placed the seeds in a sieve and set out to the village. She went from house to house, calling out, "Exchange your sifted sesame seeds for unsifted ones."
The Merchant’s Son’s Wisdom
After many houses, she reached one where the woman agreed to exchange the seeds. Just then, the woman’s son, who was knowledgeable in economics, arrived. He cautioned his mother, saying, "Mother, something is wrong with this deal. Who would exchange sifted seeds for unsifted ones without reason? There must be some flaw in these sesame seeds."
Heeding her son’s advice, the woman refused to exchange the seeds. The Brahmani, left with her impure sesame seeds, returned home and regretted her dishonest intentions.
Moral of the Story
This story teaches us that we should always act with patience and honesty, regardless of the situation. Trying to solve problems through deceit only leads to adverse outcomes. The desire to gain through trickery is ultimately harmful.
Moral: "Deception leads to downfall; patience and honesty are the best paths."
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