सोमिलक नामक जुलाहा - अभागा-बुनकर - Somilak the Weaver - A Story from Panchatantra (Mitra-Labh Section)
सोमिलक नामक जुलाहा - अभागा-बुनकर -A Story from Panchatantra (Mitra-Labh Section)
(पंचतंत्र की मित्रलाभ कांड के अनुसार)
परिचय
एक नगर में सोमिलक नामक एक जुलाहा रहता था। उसकी बुनाई की कला उत्कृष्ट थी और वह विविध प्रकार के रंगीन और सुंदर वस्त्र बुनता था। फिर भी, उसे कभी भी अच्छा धन प्राप्त नहीं हुआ था। अन्य जुलाहे, जो मोटे और साधारण कपड़े बुनते थे, धन और वैभव से संपन्न हो गए थे। सोमिलक ने सोचा कि उसका यह स्थान उसके लिए भाग्यशाली नहीं है और विदेश जाकर धनोपार्जन करने का निश्चय किया।
विदेश यात्रा और धन की प्राप्ति
सोमिलक ने विदेश जाकर तीन वर्षों में 300 सोने की मुहरें संचित कीं। रास्ते में, जब वह आधे रास्ते में रात बिताने के लिए रुका, उसे एक स्वप्न आया। स्वप्न में उसने दो भयंकर आकृति के पुरुषों को बात करते देखा। एक ने कहा कि सोमिलक के पास भोजन-वस्त्र से अधिक धन नहीं रह सकता, तब भी उसे 300 मुहरें क्यों दीं। दूसरे ने उत्तर दिया कि वह प्रत्येक पुरुषार्थी को एक बार उसका फल जरूर देता है, लेकिन उसके पास रहने देना या छीन लेना भाग्य के अधीन है। स्वप्न समाप्त हुआ और सोमिलक ने देखा कि उसकी मुहरों की गठरी खाली हो गई थी।
वापसी और पुनः प्रयास
सोमिलक दुःखी होकर वापस वर्धमानपुर लौट आया और फिर से कड़ी मेहनत करके एक वर्ष में 500 मुहरें संचित कीं। जब वह घर की ओर जा रहा था, तो फिर वही स्वप्न देखा जिसमें वही दो पुरुष बात कर रहे थे। इस बार भी मुहरों की गठरी रास्ते में खाली हो गई। सोमिलक ने सोचा कि धन-हीन जीवन से मृत्यु ही बेहतर है और उसने आत्महत्या करने का निश्चय किया।
आकाशवाणी और वरदान
तभी आकाशवाणी हुई, "सोमिलक, ऐसा दुःसाहस मत कर। मैंने ही तेरा धन चुराया है। तेरे भाग्य में भोजन-वस्त्र मात्र से अधिक धन का उपभोग नहीं लिखा है। घर जाकर सुख से रह। यदि तुझे वरदान चाहिए, तो एक मांग ले।" सोमिलक ने धन की इच्छा व्यक्त की, लेकिन देवता ने कहा कि धन का क्या उपयोग, भोग-रहित धन का क्या होगा।
देवता ने सोमिलक को आदेश दिया कि वह वर्धमानपुर जाए और वहां दो बणियों से मिले: एक गुप्तधन और दूसरा उपभुक्त धन। सोमिलक को एक का चयन करना होगा कि वह किस प्रकार के धन का वरदान चाहता है।
गुप्तधन के घर की यात्रा
सोमिलक पहले गुप्तधन के घर गया। वहां उसे कोई आदर नहीं मिला और गुप्तधन ने उसे रुखी-सूखी रोटी दी। सोमिलक ने वह खाकर सो गया। स्वप्न में देखा कि गुप्तधन बीमार हो गया और उसे उपवास करना पड़ा। इसका परिणाम था कि गुप्तधन की क्षतिपूर्ति हो गई।
उपभुक्तधन के घर की यात्रा
इसके बाद, सोमिलक उपभुक्तधन के घर गया। वहां उसे अच्छा सत्कार मिला और उसे सुंदर बिछौना भी दिया गया। स्वप्न में देखा कि उपभुक्तधन ने बहुत सारा धन व्यय किया। अगली सुबह, राज-प्रसाद के रूप में धन उपभुक्तधन को मिला।
नैतिक शिक्षा
सोमिलक की कहानी हमें यह सिखाती है कि धन का सही उपयोग ही उसकी महत्ता को बढ़ाता है। गुप्तधन, जिसे कभी खर्च नहीं किया जाता, अंततः मूल्यहीन साबित होता है, जबकि उपभुक्तधन, जो सत्कार और उपयोग में आता है, समाज में आदर प्राप्त करता है और उपयोगी साबित होता है। इस प्रकार, धन का सही उपयोग ही उसकी वास्तविक महत्ता को दर्शाता है।
Somilak the Weaver - A Story from Panchatantra (Mitra-Labh Section)
(According to the Mitralabh section of Panchatantra)
Introduction
In a town, there lived a weaver named Somilak. His weaving skills were exceptional, and he created colorful and beautiful fabrics. However, despite his talent, he never earned much wealth. Other weavers, who produced plain and simple clothes, had become prosperous. Somilak thought that perhaps his current place was not fortunate for him, so he decided to go to foreign lands to earn money.
Journey Abroad and Accumulating Wealth
Somilak traveled abroad and, after three years, saved 300 gold coins. On his way back, he stopped midway to spend the night. During his sleep, he had a dream in which he saw two fearsome-looking men conversing. One said, “Somilak is destined to have no more than basic food and clothing, so why give him these 300 gold coins?” The other replied, “I always reward every hardworking person, but keeping or losing that reward is up to fate.” When Somilak woke up, he found that his bag of coins had disappeared.
Returning and Trying Again
Disheartened, Somilak returned to his town of Vardhamanpur and worked hard once again. Within a year, he accumulated 500 gold coins. On his way back home, he had the same dream where the two men were talking again. As before, his bag of coins was emptied along the way. Somilak became so dejected that he thought living a life without wealth was worse than death, and he decided to end his life.
Divine Voice and a Blessing
Just then, a divine voice called out, "Somilak, do not act rashly. It was I who took away your wealth. You are destined to have no more than basic food and clothing. Go back home and live peacefully. If you seek a blessing, ask for one." Somilak expressed his desire for wealth, but the deity said, "What good is wealth if you cannot enjoy it? Wealth without pleasure is useless."
The deity then instructed Somilak to go to Vardhamanpur and meet two merchants: Guptadhan (Hidden Wealth) and Upabhuktadhan (Spent Wealth). Somilak had to choose which type of wealth he wanted as his blessing.
Journey to Guptadhan’s House
Somilak first went to Guptadhan’s house. There, he received no warm welcome, and Guptadhan offered him only dry, stale bread. After eating, Somilak slept and dreamt that Guptadhan had fallen ill and had to fast. As a result, Guptadhan’s wealth remained unused and his fortune was diminished.
Journey to Upabhuktadhan’s House
Next, Somilak visited Upabhuktadhan’s house. He was warmly welcomed, served a lavish meal, and given a comfortable bed. In his dream, he saw that Upabhuktadhan had spent a large amount of his wealth. The next morning, more wealth arrived for Upabhuktadhan as royal rewards.
Moral of the Story
Somilak's story teaches us that the true value of wealth lies in its proper use. Hidden wealth, which is never spent, ultimately becomes meaningless, whereas spent wealth, which is used for hospitality and helping others, earns respect and proves to be truly valuable. Therefore, the right use of wealth enhances its real worth.
"The proper utilization of wealth gives it true significance."
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