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टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान - The Story of the Plover Couple and the Arrogant Sea - Panchatantra story


 

टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान - The Story of the Plover Couple and the Arrogant Sea - Panchatantra kids stories in Hindi

टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान

भूमिका

पंचतंत्र की कहानियाँ भारतीय संस्कृति में गहराई से जुड़ी हुई हैं और इनमें से प्रत्येक कहानी नैतिकता और जीवन के गहन संदेशों को सरलता से प्रस्तुत करती है। "टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान" एक ऐसी ही कहानी है जो दृढ़ निश्चय, साहस और आत्म-विश्वास की महत्ता को उजागर करती है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि छोटी-से-छोटी प्राणी भी यदि साहस और दृढ़ता से काम लें तो बड़े से बड़े शक्ति के प्रतीक को चुनौती दे सकते हैं।

टिटिहरी का जोड़ा

किसी समय की बात है, एक शांतिपूर्ण और खुशहाल जंगल के किनारे, एक सुंदर समुद्र के पास, एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था। यह जोड़ा हर दिन सूर्योदय का स्वागत करता, अपने लिए भोजन ढूंढता और शाम को वापस अपने घोंसले में लौट आता था। वे दोनों एक-दूसरे के प्रति गहरे प्रेम और स्नेह से भरे हुए थे और उनके बीच का बंधन बहुत मजबूत था।

घोंसला बनाने का निर्णय

एक दिन, टिटिहरी का जोड़ा अपने अंडे देने के लिए एक सुरक्षित स्थान की तलाश में था। उन्होंने सोचा कि समुद्र के किनारे पर स्थित एक रेत का टीला उनके अंडे रखने के लिए सबसे अच्छा स्थान होगा। वहाँ पर उन्हें न तो कोई शिकारी जानवर परेशान कर सकता था और न ही किसी प्रकार का खतरा था। इस प्रकार, टिटिहरी ने समुद्र के किनारे पर अपने अंडे देने का निर्णय लिया।

टिटिहरी ने अपनी मेहनत और धैर्य के साथ रेत के टीले में एक छोटा सा घोंसला बनाया और उसमें अंडे रख दिए। वे दोनों अपने आने वाले बच्चों के सपने बुनने लगे और हर दिन उन अंडों की देखभाल करने लगे।

समुद्र का अभिमान

समुद्र, जोकि विशाल और शक्तिशाली था, को अपने बल और शक्ति पर बहुत घमंड था। उसे अपने अपार जल राशि और उसकी गहराई पर बहुत अभिमान था। उसने कभी यह नहीं सोचा था कि कोई छोटी सी चिड़िया भी उसकी शक्ति को चुनौती दे सकती है। एक दिन, समुद्र की लहरें उफान पर थीं और उसने अपनी सीमा से बाहर जाकर किनारे पर स्थित रेत के टीले को भी अपनी चपेट में ले लिया। यह लहरें इतनी तेज़ थीं कि उन्होंने टिटिहरी के अंडों को बहा दिया और वे गहरे समुद्र में खो गए।

टिटिहरी का शोक

जब टिटिहरी और उसका साथी अपने अंडों की देखभाल करने के लिए घोंसले के पास आए, तो उन्होंने देखा कि उनके अंडे गायब हैं। यह देखकर वे बहुत दुखी हुए और उनका ह्रदय टूट गया। टिटिहरी ने अपने अंडों को वापस पाने के लिए समुद्र से विनती की, लेकिन समुद्र ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। उसने सोचा कि टिटिहरी जैसी छोटी चिड़िया उसके विशाल और शक्तिशाली जल राशि के सामने कुछ भी नहीं कर सकती।

टिटिहरी का दृढ़ निश्चय

टिटिहरी ने समुद्र से विनती की, "हे समुद्र, कृपया मेरे अंडे वापस कर दो। वे मेरे बच्चे हैं और मैंने उन्हें बहुत मेहनत से पाला है।" लेकिन समुद्र ने उसकी बातों का कोई उत्तर नहीं दिया और अपने अभिमान में डूबा रहा।

यह देखकर टिटिहरी ने अपने पति से कहा, "हम अपने अंडों को समुद्र से वापस लाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। चाहे हमें कितनी भी मुश्किलों का सामना करना पड़े, हम पीछे नहीं हटेंगे।"

टिटिहरी का पति भी दृढ़ निश्चयी था। उसने कहा, "हम समुद्र को उसकी गलती का एहसास कराएंगे और अपने अंडों को वापस लेकर रहेंगे।" इस प्रकार, उन्होंने समुद्र के पानी को खाली करने की ठानी।

समुद्र से संघर्ष

टिटिहरी का जोड़ा हर दिन समुद्र के किनारे जाकर अपनी चोंच में पानी भरकर बाहर फेंकने लगे। वे दोनों मिलकर समुद्र का पानी बाहर फेंकते और समुद्र को यह एहसास दिलाने की कोशिश करते कि वे अपने अंडों के लिए कितने गंभीर हैं। टिटिहरी का यह संघर्ष देखकर समुद्र को हंसी आई। उसने सोचा कि इतनी छोटी चिड़िया उसके विशाल जल राशि को कैसे कम कर सकती है?

लेकिन टिटिहरी और उसका साथी हार मानने को तैयार नहीं थे। वे दिन-रात मेहनत करते रहे और अपनी चोंच में पानी भरकर बाहर फेंकते रहे। उनका यह दृढ़ निश्चय देखकर अन्य चिड़ियाँ और छोटे जीव-जंतु भी उनकी सहायता के लिए आगे आए।

गरुड़ का आना

टिटिहरी के इस साहसिक प्रयास की खबर जंगल के सभी प्राणियों तक पहुँच गई। यह सुनकर गरुड़, जो कि सभी पक्षियों का राजा था, को भी टिटिहरी के बारे में पता चला। उसने सोचा कि अगर एक छोटी चिड़िया इतनी दृढ़ निश्चयी है, तो उसे सहायता करनी चाहिए। गरुड़ टिटिहरी के पास गया और उसकी बातों को सुना।

गरुड़ ने टिटिहरी से कहा, "तुम्हारा साहस और निश्चय अत्यंत प्रेरणादायक है। मैं तुम्हारी सहायता करूंगा और समुद्र को तुम्हारे अंडे वापस करने के लिए मजबूर करूंगा।" गरुड़ ने समुद्र से कहा, "यदि तुमने टिटिहरी के अंडे वापस नहीं किए, तो मैं अपनी शक्ति से तुम्हारे सारे जल को सुखा दूंगा और तुम्हें समाप्त कर दूंगा।"

समुद्र का आत्मसमर्पण

गरुड़ की शक्ति और क्रोध को देखकर समुद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने सोचा कि गरुड़ से संघर्ष करना उसके लिए कठिन होगा और वह हार मान सकता है। इसलिए, समुद्र ने टिटिहरी के अंडों को सुरक्षित वापस कर दिया।

टिटिहरी और उसका साथी अपने अंडों को पाकर बहुत खुश हुए। उन्होंने गरुड़ का धन्यवाद किया और समुद्र से भी अपनी गलती स्वीकारने के लिए माफी मांगी। समुद्र ने भी उनसे क्षमा मांगी और वादा किया कि वह कभी भी अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करेगा।

नैतिक शिक्षा

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि दृढ़ निश्चय और साहस के सामने किसी भी शक्ति का अभिमान टिक नहीं सकता। टिटिहरी जैसी छोटी चिड़िया ने अपने निश्चय और साहस से समुद्र जैसे विशाल और शक्तिशाली तत्व को भी झुका दिया। जब हम अपने उद्देश्यों के प्रति ईमानदारी और दृढ़ता से लगे रहते हैं, तो हम किसी भी कठिनाई का सामना कर सकते हैं और सफलता प्राप्त कर सकते हैं।


The Story of the Plover Couple and the Arrogant Sea - Panchatantra story in English

The Story of the Plover Couple and the Arrogant Sea

Introduction: 

Panchatantra stories are deeply rooted in Indian culture, each conveying profound messages and morals in a simple way. "The Story of the Plover Couple and the Arrogant Sea" is one such tale that highlights the importance of determination, courage, and self-confidence. This story teaches us that even the smallest of creatures, when armed with courage and resolve, can challenge the mightiest of forces.

The Plover Couple: 

Once upon a time, near a beautiful sea on the edge of a peaceful and happy forest, lived a plover couple. Every day, they welcomed the sunrise, searched for food, and returned to their nest by evening. The two were deeply in love and shared a strong bond of affection and companionship.

The Decision to Build a Nest: 

One day, the plover couple was searching for a safe place to lay their eggs. They thought that a sand dune near the sea would be the best spot to place their eggs. There, they would be safe from predators and free from any danger. Thus, the plover decided to lay their eggs near the sea.

With hard work and patience, the plover built a small nest in the sand dune and placed their eggs in it. They began dreaming of the chicks that would soon hatch and took great care of the eggs every day.

The Sea’s Arrogance: 

The sea, vast and powerful, was very proud of its strength and might. It took great pride in its boundless waters and immense depth. It never imagined that a tiny bird could challenge its power. One day, the sea's waves were particularly strong, and they surged beyond their usual boundary, engulfing the sand dune on the shore. The waves were so fierce that they washed away the plover’s eggs, carrying them deep into the ocean.

The Plover’s Grief: 

When the plover and her mate returned to care for their eggs, they were heartbroken to find them missing. Overcome with grief, the plover begged the sea to return their eggs, but the sea paid no attention to their pleas. The sea thought that a small bird like the plover was no match for its vast and powerful waters.

The Plover’s Determination: 

The plover pleaded with the sea, saying, "Oh sea, please return my eggs. They are my children, and I have nurtured them with great care." But the sea remained indifferent, lost in its arrogance.

Seeing this, the plover said to her mate, "We will do everything in our power to get our eggs back from the sea. No matter how difficult it gets, we will not give up."

The plover’s mate, equally determined, said, "We will make the sea realize its mistake and retrieve our eggs." With this resolve, they decided to empty the sea’s water.

The Struggle Against the Sea: 

Every day, the plover couple went to the shore and began to scoop water out of the sea with their beaks, throwing it out onto the land. They tirelessly worked together, trying to show the sea how serious they were about getting their eggs back. Seeing their efforts, the sea laughed, thinking that such a tiny bird could never diminish its vast waters.

But the plover and her mate refused to give up. They worked day and night, continuing to scoop water out of the sea with their beaks. Their unwavering determination inspired other birds and small creatures to come forward and help them.

The Arrival of Garuda: 

The news of the plover’s courageous efforts spread throughout the forest, reaching all the animals. Eventually, Garuda, the king of all birds, heard about the plover's plight. He thought that if such a small bird could show such determination, he should help them. Garuda went to the plover and listened to their story.

Garuda said to the plover, "Your courage and determination are truly inspiring. I will help you and force the sea to return your eggs." Garuda then approached the sea and said, "If you do not return the plover’s eggs, I will use my power to dry up all your water and destroy you."

The Sea’s Surrender: 

Seeing Garuda’s power and anger, the sea realized its mistake. The sea knew that challenging Garuda would be difficult and could lead to its downfall. Therefore, the sea safely returned the plover’s eggs.

The plover and her mate were overjoyed to have their eggs back. They thanked Garuda and even apologized to the sea for making it realize its mistake. The sea, in turn, asked for their forgiveness and promised never to misuse its power again.

Moral of the Story: 

This story teaches us that no arrogance, no matter how powerful, can stand against determination and courage. A tiny bird like the plover, with her resolve and bravery, was able to humble the vast and mighty sea. When we pursue our goals with honesty and perseverance, we can overcome any difficulty and achieve success.

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