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विवाह, दुःख और नई उम्मीदों की दिल छूने वाली कहानी - उम्मीद की किरण - Umeed ki Kiran Hindi Kahani

विवाह, दुःख और नई उम्मीदों की दिल छूने वाली कहानी - उम्मीद की किरण




कहानी - उम्मीद की किरण 

दीप्ति की शादी की तीसरी सालगिरह थी। आज उसने अपनी पसंदीदा हरी साड़ी पहनी थी, हाथों में चमचमाती चूड़ियाँ सजाई थीं और पांव में सुंदर पायल डाली थी। उसकी मुस्कान में एक खास चमक थी, जो उसकी खुशी को बयाँ कर रही थी। उसकी एक साल की बेटी, सिया, उसके पास खेल रही थी। दीप्ति और आदित्य ने अपनी शादी की तीसरी सालगिरह पर खास योजना बनाई थी। आदित्य ने एक घंटे पहले ही फोन किया था कि वह ऑफिस से निकल चुका है और जल्द ही घर आकर उसे एक रोमांटिक डिनर पर ले जाएगा। दीप्ति की आँखों में आदित्य के लिए प्यार और गर्व की चमक थी।

समय बीत चुका था, लेकिन आदित्य अब तक घर नहीं आया था। दीप्ति ने घड़ी देखी और सोचा कि दो घंटे हो चुके हैं। उसने आदित्य को फोन किया, लेकिन उसका फोन नहीं लगा। दीप्ति की चिंता बढ़ने लगी, लेकिन उसने सोचा कि शायद वह ट्रैफिक में फंस गया होगा। तभी उसका फोन बज उठा। स्क्रीन पर एक अंजान नंबर था। उसने कॉल उठाया और दूसरी ओर से गंभीर आवाज आई, "मैं अस्पताल से बोल रहा हूँ। आपके पति आदित्य एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए हैं। उनकी हालत गंभीर है। आपके नंबर के साथ ही उनका पर्स मिला, इसलिए आपको सूचित कर रहा हूँ।"

दीप्ति के हाथ से फोन गिर पड़ा। उसकी आँखों में आँसू भर आए और दिल की धड़कन तेज हो गई। उसने जल्दी से सिया को पड़ोसियों के पास छोड़ा और अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी। अस्पताल पहुँचकर उसे भारी भीड़ का सामना करना पड़ा। लोग अपनी गाड़ियों में बैठे हुए थे, और एंबुलेंस की आवाजें गूंज रही थीं। दीप्ति ने पुलिस और डॉक्टर से जानकारी ली और अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड की ओर बढ़ी। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि आदित्य की हालत बहुत गंभीर थी, और वह अस्पताल पहुँचने से पहले ही दम तोड़ चुका था। दीप्ति की चीखें अस्पताल के हॉल में गूंज उठीं और उसके आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

आदित्य के माता-पिता, कुमुद जी और विनोद जी, भी जल्दी ही अस्पताल पहुँचे। उनकी आँखों में गहरा दुःख और शोक था। कुमुद जी ने सिया को अपनी गोद में उठाया और उसे दुलारा। सिया अब सो चुकी थी।

सारा क्रिया-कर्म समाप्त होने के बाद, परिवार और दोस्तों की एक बैठक का आयोजन किया गया। दीप्ति के माता-पिता, मनीष जी और सुचित्रा जी, भी वहाँ पहुँचे। दीप्ति का दिल पूरी तरह से टूट चुका था और वह अपने ससुरालवालों के साथ भावनात्मक बातचीत में व्यस्त हो गई। मनीष जी ने विनोद जी से कहा, "हमारी बेटी बहुत भावुक और कमजोर है। क्या आप हमें उसे अपने घर ले जाने की अनुमति देंगे? वह इस दर्द को अकेले नहीं झेल पाएगी।"

विनोद जी ने गंभीरता से जवाब दिया, "हम आपकी बेटी को अपने साथ ले जाना चाहते हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि हमारी स्थिति की गंभीरता को भी समझें। हमारे छोटे बेटे राजू का विवाह अभी तय नहीं हुआ है। क्या आप सोचते हैं कि दीप्ति और राजू का रिश्ता एक नई शुरुआत हो सकता है?"

दीप्ति के माता-पिता और राजू इस प्रस्ताव पर चकित हो गए। कुमुद जी ने आगे कहा, "हमने अपने बेटे को खो दिया है और हमें गहरा दुःख है। लेकिन दीप्ति की स्थिति को देखते हुए, हमें लगता है कि राजू के साथ उसका रिश्ता एक नई शुरुआत हो सकता है। राजू का विवाह अभी तय नहीं हुआ है और दीप्ति को एक नया जीवन मिल सकता है।"

दीप्ति ने आदित्य की तस्वीरों को देखते हुए सोचा, "ईश्वर ने आदित्य को मुझसे छीन लिया, लेकिन अच्छे ससुराल वाले दिए।" वह अपने पति की यादों को अपने दिल में बसा कर जीना चाहती थी।

राजू ने मूक रहकर सबकी बातें सुनी और अंततः उसने सहमति दे दी। कुमुद जी ने दीप्ति से पूछा, "क्या तुम्हारी इस निर्णय से सहमति है?"

दीप्ति ने कहा, "मैं राजू के साथ रिश्ता नहीं बनाना चाहती। वह मेरे देवर हैं और रहेंगे। मैं आदित्य की यादों के सहारे जीवन बिताना चाहूंगी। अगर आपको स्वीकार हो तो ठीक है, वरना मुझे एक कमरे में जगह दे दें, मैं वहीं खुश रहूँगी।"

कुमुद जी ने कहा, "जिंदगी में कुछ रिक्त स्थान हमेशा रहेंगे, लेकिन तुम्हारी खुशी हमारी खुशी है।"

दीप्ति की आत्म-विश्वास और दृढ़ता ने सभी को प्रभावित किया। उसकी कहानी एक जीता-जागता उदाहरण थी कि जीवन की सबसे कठिन परिस्थितियों में भी आत्म-संयम और साहस बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण होता है। सभी के सवालों के जवाब मिल चुके थे और दीप्ति का चेहरा आत्म-विश्वास और शांति से भरा हुआ था। उसकी ताकत और हिम्मत ने सभी को चुप करा दिया और उसकी कहानी जीवन की सच्चाइयों और संघर्षों का प्रतीक बन गई।

इस घटना के बाद, दीप्ति ने अपने जीवन को फिर से संभालने की कोशिश की। उसने सिया को अच्छे से पाल-पोस कर बड़ा किया और अपने माता-पिता की मदद से जीवन की कठिनाइयों का सामना किया। राजू के साथ रिश्ता नहीं बनने का निर्णय उसने आत्म-संतोष के साथ स्वीकार किया। उसने अपने पति की यादों को संजोए रखा और अपने परिवार को संभालते हुए जीवन के नए पहलुओं को अपनाया। इस तरह, दीप्ति ने अपने जीवन के दुखद अनुभवों के बावजूद नई उम्मीदों और हिम्मत के साथ आगे बढ़ने का संकल्प लिया।



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