पिछले मौसम की यादें - Pichle Mausam ki Yadein - A love Story - Hindi kahani
कहानी का नाम: "पिछले मौसम की यादें"
हिस्सा 1: मुलाकात और दोस्ती
रावी एक छोटे से कस्बे में रहती थी, जहाँ ज़िन्दगी बहुत ही साधारण थी। 22 साल की उम्र में भी उसकी ज़िन्दगी में वो रंग नहीं थे जो वो सोचा करती थी। उस कस्बे के लोग उसकी सादगी और पढ़ाई के प्रति रुचि की तारीफ़ करते थे, पर रावी के दिल में एक खालीपन था जिसे वह किसी से बाँट नहीं पाती थी। अपने ख्यालों और किताबों के साथ ही वह अपने दर्द को छुपाने की कोशिश करती थी।
एक दिन जब वह पुराने स्टेशन के पास बैठी थी, तब उसकी मुलाकात आरव से हुई। आरव को वह बस एक नए चेहरे के तौर पर जानती थी, लेकिन वह उस कस्बे में कुछ समय के लिए अपने परिवार के साथ आया था। आरव बहुत खुशमिजाज और जिंदगी से भरपूर था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी जो रावी को अक्सर मुस्कुराने पर मजबूर कर देती थी। धीरे-धीरे दोनों की बातें होने लगीं, और वह अच्छे दोस्त बन गए।
एक दिन रावी ने आरव को अपने बचपन का एक किस्सा सुनाया, जब उसने अपने छोटे भाई को खो दिया था। यह वह घटना थी जिसने उसके दिल में गहरा ज़ख्म छोड़ दिया था। आरव उस समय कुछ बोल नहीं पाया, बस चुपचाप उसके आँसुओं को देखता रहा। उस दिन से दोनों के बीच का रिश्ता और गहरा होता गया, और दोनों एक-दूसरे के साथ अपने हर खुशी और ग़म को बाँटने लगे।
हिस्सा 2: मोहब्बत और जुदाई
आरव और रावी का दोस्ती का रिश्ता कब मोहब्बत में बदल गया, यह उन्हें खुद भी समझ नहीं आया। पर एक दिन आरव को शहर लौटना पड़ा। उसके घर में कुछ समस्याएँ थीं और उनका कस्बे में ज्यादा दिन रुकना मुमकिन नहीं था। आरव और रावी दोनों ये नहीं चाहते थे कि वे अलग हों, पर जिंदगी की मजबूरियाँ अक्सर हमारे सपनों पर भारी पड़ जाती हैं।
जाने के दिन रावी ने आरव को एक पुरानी किताब दी, जिसमें उन दोनों ने साथ में कुछ लिखा था और कुछ तस्वीरें चिपकाई थीं। आरव ने रावी का हाथ पकड़ा और कहा, “मैं ज़रूर वापस आऊँगा। तुम इंतज़ार करोगी ना?”
रावी ने अपने आँसू छुपाते हुए कहा, “हमेशा।”
पर समय बीता और आरव से कोई खबर नहीं मिली। रावी हर रोज उसी स्टेशन पर जाती, जहाँ उन दोनों की मुलाकात हुई थी। पर वक्त के साथ उसका इंतज़ार भी कमजोर पड़ने लगा। एक दिन, उसने एक अखबार में देखा कि आरव की एक घटना में मौत हो गई थी।
रावी का दिल टूट गया। उसने अपने आप को दुनिया से अलग कर लिया और सिर्फ अपने ख्यालों में आरव को याद करती रही। उसका दिल अब भी उसी दर्द को महसूस करता था जो उसने पहली बार अपने भाई को खोकर महसूस किया था।
हिस्सा 3: नई जिंदगी
कुछ सालों के बाद, रावी ने अपने आप को सँभाला और फैसला किया कि वह आरव की यादों के साथ जिएगी, पर अपनी जिंदगी को भी आगे बढ़ाएगी। उसने एक लाइब्रेरी शुरू की, जो उसका और आरव का सपना था। वह वहाँ उन बच्चों को किताबें पढ़ने और लिखने का जुनून जगाती जो अपने रास्ते खो बैठे थे।
रावी के लिए यह लाइब्रेरी एक नई उम्मीद थी, एक नई शुरुआत थी। आरव अब उसके साथ नहीं था, पर उसका एहसास और उसके दिए हुए ख्याल अब भी उसके साथ थे। वह हर दिन लाइब्रेरी में उसके और आरव के लिखे हुए लफ्जों को देखती और एक नए सपने में जीती।
हिस्सा 4: पुरानी यादों की बातें
रावी की लाइब्रेरी अब कस्बे में मशहूर होने लगी थी। हर उम्र के लोग वहाँ आते, और रावी उन्हें अपने अंदाज़ में किताबों से जुड़ने का तरीका बताती। रावी की ज़िन्दगी में अब थोड़ी रौनक थी, पर उसके दिल के किसी कोने में आरव की यादों का बोझ अब भी था।
एक दिन लाइब्रेरी में एक बच्चा आया, जो आरव के छोटे भाई की तरह लगता था। उसके छोटे से चेहरे पे वही मासूमियत थी जो आरव के भाई में थी। रावी ने उससे बातें करनी शुरू की, और वह लाइब्रेरी का नियमित सदस्य बन गया। यह बच्चा, अंश, रावी के लिए जैसे एक नई उम्मीद बन गया। अंश को किताबें पढ़ना और कहानियाँ लिखना पसंद था, और वह अक्सर रावी को अपने लिखे हुए छोटे-छोटे किस्से सुनाता।
एक दिन अंश ने रावी से पूछा, “आप इतनी उदास क्यों रहती हैं? कभी-कभी आपके चेहरे पर अजीब सी उदासी देखता हूँ।”
रावी ने हँसी में टालने की कोशिश की, पर फिर सोचा कि शायद उसने अपने दर्द को इतना दबा रखा है कि उसके चेहरे से वो उदासी कभी खत्म ही नहीं होती। उसने अंश को बस इतना कहा, “कुछ लोग बस यादों में जीते हैं, और कुछ यादें हमेशा साथ रहती हैं।”
अंश ने अपनी मासूमियत भरे चेहरे से कहा, “पर यादें तो हमेशा खुशी देने के लिए होती हैं ना?”
रावी कुछ नहीं बोल पाई। वह समझ गई थी कि अंश की बात में कितना सच है।
हिस्सा 5: एक अंजान खत
कुछ महीने बीत गए। रावी अपने रूटीन में वापस आ गई थी, और लाइब्रेरी में नए-नए लोग आने लगे थे। एक दिन उसने लाइब्रेरी में एक अंजान सा लिफाफा देखा, जिस पर उसका नाम लिखा था। वह थोड़ा हैरान थी, क्योंकि कोई उस लाइब्रेरी में उसे खत नहीं भेजता था।
उसने वह खत खोला और पढ़ने लगी। खत के हर शब्द में उसे आरव की याद आई। यह एक अंजान इंसान का खत था, पर उसके शब्दों में आरव की बातें थीं। खत में लिखा था:
"तुम्हारे सपने और तुम्हारा जुनून मेरे लिए कभी रहे नहीं, पर अब तुम्हें जीते हुए देख कर मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारे साथ ही मैं भी ज़िंदा हूँ।"
रावी ने खत को बार-बार पढ़ा, और उसे समझ नहीं आया कि यह किसने लिखा। उसका दिल एक अजीब सी उमंग और दर्द से भर गया था। उसने वो खत लाइब्रेरी के एक पुराने किताबों के रैक में रख दिया और वो सोचने लगी कि क्या सच में आरव उसके साथ अब भी है।
हिस्सा 6: एक अचानक मुलाकात
एक शाम लाइब्रेरी के बंद होने के थोड़ी देर पहले एक पुरुष लाइब्रेरी में आया। उसके चेहरे पे एक अजीब सा दर्द था, पर वो मुस्कुराने की कोशिश कर रहा था। रावी उससे पहले कभी नहीं मिली थी। उस इंसान ने अपना परिचय दिया और कहा, “मुझे तुम्हारी लाइब्रेरी के बारे में बहुत सुना है। मैं यहाँ तुम्हारी किताबों के बारे में थोड़ा जानने आया हूँ।”
उसने अपने आप को आरव का दोस्त बताया और कहा कि आरव के मरने के बाद उसने रावी को ढूँढना चाहा था। वो आरव का सबसे करीबी दोस्त था और उसे उसके हर एक राज का पता था। उस इंसान का नाम कबीर था। कबीर ने रावी को आरव के कुछ पुराने खत दिए जो उसने रावी के लिए लिखे थे, पर कभी भेजे नहीं। रावी ने वो खत पढ़े और आँसुओं में डूब गई।
एक खत में आरव ने लिखा था:
"रावी, तुमने मुझे जीना सिखाया है। तुम मेरी जिंदगी हो, और अगर कभी मुझसे कुछ हो जाए तो मेरी यादों में जीते रहना। तुम्हारे सपने मेरे सपने हैं।"
रावी ने कबीर से कहा, “आरव अब भी मेरे साथ है। मेरे हर सपने में, मेरी हर किताब में उसका एहसास है।” कबीर ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम्हें जीते हुए देखना आरव का सबसे बड़ा सपना था, और तुमने वो सपना पूरा किया।”
हिस्सा 7: नयी राहें
कबीर के जाने के बाद रावी ने अपनी लाइब्रेरी के लिए और ज़्यादा मेहनत करना शुरू कर दिया। उसने सोचा कि आरव के लिए वह लाइब्रेरी को एक नए मुकाम तक ले जाएगी। रावी की लाइब्रेरी में अब और भी बच्चे आने लगे और उसकी कहानियाँ सुनने लगे। लाइब्रेरी अब उसके लिए सिर्फ एक काम नहीं थी, बल्कि आरव के सपनों को जीने का एक तरीका थी।
रावी की ज़िन्दगी अब भी आरव के बिना थी, पर उसकी यादों के साथ थी। वो अपने हर नए दिन में आरव का एहसास महसूस करती थी और उसके दिए हुए सपनों को अपने जीवन का हिस्सा बनाए रखती थी।
हिस्सा 8: एक हैरतअंगेज़ मोड़
रावी के दिल में आरव के खत और डायरी के मिलने से एक नई उम्मीद जग उठी थी, और वह ऐसा महसूस करने लगी थी जैसे आरव अब भी उसके आस-पास है। उस रात उसने सपना देखा कि आरव एक खुले खेत में खड़ा है और उसकी तरफ अपने हाथ बढ़ा रहा है। रावी को लगा कि वो उससे कुछ कह रहा है, पर आवाज़ बहुत धुंधली थी।
कुछ दिन बाद लाइब्रेरी में एक इवेंट हुआ, जहाँ नए लेखकों और कवियों को अपने विचार प्रस्तुत करने का मौका दिया गया। रावी इवेंट में व्यस्त थी, पर उसका ध्यान अक्सर उसी शेल्फ की तरफ जाता, जिसमें उसने आरव की डायरी रखी थी। अचानक से एक आवाज़ उसके कानों में पड़ी—वह आवाज़ जानी-पहचानी थी, पर उसका दिल इस सच को स्वीकार नहीं करना चाहता था।
"रावी!"
उसने पलट कर देखा और वहीं ठिठक गई। आरव उसके सामने खड़ा था, ज़िंदा और मुस्कुराता हुआ! रावी को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। कैसी ये चमत्कार थी? आरव सच में वहाँ था!
आरव ने थोड़ा झुक कर कहा, “मुझे माफ़ करना, रावी। बहुत पहले मुझे एक एक्सीडेंट के बाद एक लम्बे इलाज के लिए ले जाया गया था और मैं तुमसे मिल नहीं पाया। तुम्हें ढूँढने और तुम्हें सब कुछ समझाने में इतना वक्त लग गया…”
रावी के आँसू रुक नहीं पाए। उसके आँसुओं में दर्द, इंतजार और ख़ुशी सब कुछ था। आरव उसके क़रीब आया और उसका हाथ पकड़ कर कहा, “मैंने कहा था ना, मैं ज़रूर लौटूंगा। तुमने मेरे सपनों को जीना शुरू कर दिया, और यही देखने के लिए मैं वापस आया हूँ।”
रावी ने उसके हाथ को पकड़े रखते हुए कहा, “मैंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी थी। तुम्हारे बिना सब कुछ अधूरा था, पर अब तुम वापस आ गए हो।”
लाइब्रेरी में जो लोग थे, वो दोनों को देख रहे थे, जैसे एक कहानी का सच्चा और प्यारा अंत देख रहे हों। रावी और आरव ने मिल कर लाइब्रेरी को एक नई शुरुआत देने का फैसला किया, जहाँ वो अपने सपने और उनका प्यार लोगों के साथ बाँट सकते थे। उनकी कहानी अब एक यादों में जीने वाली कहानी नहीं थी, बल्कि एक नई ज़िन्दगी थी, एक नई शुरुआत।
यह कहानी एक सच्चे इंतजार और उम्मीद का संगम थी, जिसमें रावी का प्यार सच में रंग लाया, और आरव के साथ उसकी कहानी ख़त्म नहीं, बल्कि एक नए सफर में बदल गई।
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