बिछड़े रिश्तों की वापसी (The Return of Lost Bonds)
सुमन की शादी को अभी कुछ ही दिन हुए थे। बड़े से आंगन वाला, संयुक्त परिवार में उसका स्वागत खूब धूमधाम से किया गया था। यहाँ हर चीज़ पारंपरिक थी, मानो समय ठहर गया हो। उसकी सास, ससुर, देवर-जेठ, और छोटे-छोटे बच्चे—सब मिलकर एक ही छत के नीचे रहते थे।
उस दिन सुमन की पहली रसोई थी। सुबह से ही पूरे घर में हलचल थी। सास ने प्यार से समझाया था, "बहू, पहली रसोई में कुछ मीठा बनता है। हलवा बना लो, और हाँ, सबके लिए रोटी भी तुम्हें ही बनानी होगी।"
सुमन ने सिर झुकाकर 'जी' कह दिया।
जैसे ही वह हलवा बनाने में व्यस्त थी, अचानक दरवाजे पर एक आवाज़ गूंजी—
"मिले माई! लंगड़ा आया है!"
सुमन चौंक गई। आवाज़ इतनी बुलंद थी कि घर के कोने-कोने तक गूंज गई।
अगले ही पल रामप्रसाद जी रसोई में आए और बोले, "बहू, दो रोटी और थोड़ा सा साग निकाल दो... रघुवीर आया है।"
सुमन को यह समझने में थोड़ा समय लगा कि यह कौन है और क्यों आता है, लेकिन उसने बिना सवाल किए चुपचाप दो रोटियाँ और सब्ज़ी निकालकर ससुर जी को दे दी।
रामप्रसाद जी ने थाली लेकर आंगन के दरवाजे पर बैठे एक वृद्ध व्यक्ति को दी। वह अधेड़ उम्र का था, मैले-कुचैले कपड़े पहने, सिर पर सफेद बालों की झुंड, दाईं टांग घुटने से नीचे नहीं थी, और वह लकड़ी की बैसाखियों के सहारे खड़ा था। उसकी आँखों में एक अजीब-सी नमी और गहरी थकान थी।
सुमन ने पर्दे के पीछे से उसे देखा। रामप्रसाद जी ने रोटी देते हुए कहा, "रघुवीर, आज बहू की पहली रसोई थी, इसलिए हलवा भी है, खा लो।"
रघुवीर काका ने कांपते हाथों से थाली पकड़ी, मुस्कुराए और कहा, "बधाई हो मालिक! बहू आई है, भगवान भला करे।"
सुमन को यह सब अजीब लग रहा था। उसने सास से धीरे से पूछा, "माँजी, ये कौन हैं?"
सास ने मुस्कुराते हुए कहा, "बहू, ये रघुवीर काका हैं। पहले ड्राइवर थे, मगर एक हादसे में पैर खो दिया। बेटा था, मगर वो अपनी दुनिया में चला गया। अब ये अकेले हैं, हमसे जो बन पड़े, मदद कर देते हैं।"
सुमन ने सिर हिलाया, लेकिन मन में कई सवाल उठने लगे।
सुमन के मन में रघुवीर काका को लेकर जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी। एक तरफ वह उन्हें देखकर दया महसूस कर रही थी, तो दूसरी तरफ यह समझ नहीं पा रही थी कि उनका अपना बेटा उन्हें इस हाल में कैसे छोड़ सकता है।
रात को जब सब लोग खाना खाकर अपने-अपने कमरे में चले गए, तब सुमन ने धीरे से अर्जुन से पूछा, "सुनिए, ये रघुवीर काका कौन हैं? मैंने माँजी से सुना कि उनका बेटा है, फिर वो यहाँ क्यों आते हैं?"
अर्जुन थोड़ा गंभीर हो गया और धीरे-धीरे बताने लगा,
"रघुवीर काका पहले हमारे घर के ड्राइवर हुआ करते थे। बहुत ही ईमानदार और मेहनती इंसान थे। जब पिताजी की नौकरी थी, तब वो हमेशा उनके साथ रहते थे। फिर एक दिन एक हादसा हुआ… एक भयानक सड़क दुर्घटना में उन्होंने अपना पैर खो दिया। उसके बाद उनका काम छूट गया। उनके पास जो थोड़ी-बहुत जमीन थी, वह उन्होंने अपने बेटे विजय की पढ़ाई के लिए बेच दी।"
सुमन की आँखें चौड़ी हो गईं, "फिर?"
"फिर क्या? विजय पढ़-लिखकर शहर चला गया, वहीं नौकरी करने लगा। शुरू-शुरू में चिट्ठियाँ आती थीं, पैसे भी भेजता था, लेकिन धीरे-धीरे सब बंद हो गया।"
"क्यों? क्या उसने दूसरी शादी कर ली या घर वालों से झगड़ा हो गया?"
अर्जुन ने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, झगड़ा नहीं हुआ। बस, उसे अपने माता-पिता की जरूरत महसूस ही नहीं हुई। उसे अपनी दुनिया में खो जाने की आदत हो गई। कहते हैं कि इंसान जब खुद तक ही सीमित रह जाए, तो अपनों की परवाह करना भूल जाता है।"
सुमन चुपचाप सुन रही थी।
अर्जुन ने आगे कहा, "अब रघुवीर काका और कमला काकी गाँव में अकेले रहते हैं। कभी-कभी यहाँ आ जाते हैं, पिताजी से मिलते हैं। हम लोग जो बन पड़ता है, उनकी मदद कर देते हैं।"
सुमन का मन भारी हो गया। कैसा अजीब समय आ गया है, जहाँ अपने ही अपनों को छोड़ देते हैं?
अगली सुबह सुमन ने अपनी सास से कहा, "माँजी, क्या मैं रघुवीर काका से मिल सकती हूँ?"
सास ने हैरानी से पूछा, "क्यों बहू?"
"बस यूँ ही, मैं उनसे बात करना चाहती हूँ।"
सास ने सिर हिलाया, "अच्छा, जा ले, पर ध्यान रखना, वो थोड़े जिद्दी स्वभाव के हैं।"
सुमन आंगन में गई, जहाँ रघुवीर काका एक चारपाई पर बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे।
"राम-राम, काका!" सुमन ने झुककर प्रणाम किया।
रघुवीर काका ने आश्चर्य से देखा, "अरे बहू, तू?"
"जी, मैं आपसे थोड़ा बात करना चाहती थी।"
रघुवीर काका हल्का-सा मुस्कुराए, "बोल बेटी, क्या बात है?"
सुमन थोड़ी झिझकते हुए बोली, "आपको कैसा लगता है यहाँ आकर?"
रघुवीर काका ने गहरी सांस ली, "अच्छा लगता है, पर मन में एक टीस भी उठती है। जब अपने ही पराए हो जाते हैं, तो फिर कोई भी जगह अपने जैसी नहीं लगती।"
सुमन के दिल को कुछ चुभ-सा गया। वह थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, "अगर मैं आपसे कहूँ कि मैं आपकी बेटी जैसी हूँ, तो क्या आप मुझसे भी वैसे ही बातें करेंगे जैसे अपनी बेटी से करते?"
रघुवीर काका कुछ देर तक उसे देखते रहे, फिर धीरे से बोले, "बेटी, बातों से कोई रिश्ता नहीं बनता, दिल से बनता है।"
सुमन ने मन ही मन एक निश्चय कर लिया—वह रघुवीर काका को फिर से मुस्कुराना सिखाएगी।
सुमन के मन में अब यह विचार घर कर चुका था कि वह रघुवीर काका और कमला काकी को फिर से खुश देखना चाहती है। वह जानती थी कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन उसे विश्वास था कि सच्चे मन से की गई कोशिश कभी व्यर्थ नहीं जाती।
अगली सुबह, जब रघुवीर काका हमेशा की तरह दरवाजे पर आए, तो सुमन खुद चाय लेकर उनके पास पहुँची।
"काका, लीजिए चाय पीजिए।"
रघुवीर काका ने आश्चर्य से सुमन की ओर देखा।
"अरे बहू, ये तू क्यों लाई?"
सुमन मुस्कुराई, "क्यों? क्या बहू अपने बाबा को चाय नहीं दे सकती?"
रघुवीर काका कुछ नहीं बोले, बस हल्का-सा सिर हिलाया और चाय का प्याला पकड़ लिया।
सुमन वहीं बैठ गई। "काका, क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकती हूँ?"
रघुवीर काका ने हँसकर कहा, "पूछ बेटी।"
"आपका बेटा विजय… उसने कभी आपको बुलाया नहीं?"
रघुवीर काका की आँखों में एक हल्की उदासी आ गई। उन्होंने धीरे से कहा, "बुलाने की जरूरत ही कहाँ पड़ी? जब उसे मेरी जरूरत थी, तब मैं था। अब उसे मेरी जरूरत नहीं, तो बुलाएगा क्यों?"
सुमन चुप हो गई। उसने महसूस किया कि यह दर्द बहुत गहरा था।
"काका, अगर आपको मौका मिले तो आप अपने बेटे को माफ कर देंगे?"
रघुवीर काका ने लंबी सांस ली। "बेटी, माफी तो मैं उसे कब का दे चुका, पर क्या वह खुद को माफ कर पाया होगा?"
सुमन ने महसूस किया कि इस रिश्ते को सुधारने के लिए कुछ करना होगा।
सुमन ने मन ही मन तय किया कि विजय को इस बात का एहसास कराना होगा कि उसके माता-पिता अब भी उसका इंतजार कर रहे हैं। उसने अर्जुन से कहा, "सुनिए, क्या विजय का कोई संपर्क नंबर है?"
अर्जुन ने सिर हिलाया, "हाँ, पर वह फोन नहीं उठाता।"
सुमन ने जिद पकड़ ली, "एक बार कोशिश तो करनी ही होगी।"
अर्जुन ने विजय को कई बार फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। आखिरकार, सुमन ने एक पत्र लिखने का फैसला किया।
📜 पत्र:
"प्रिय विजय भैया,
आपकी यादें आपके माता-पिता के साथ अब भी जीवित हैं। वे अब भी हर दिन आपकी राह देखते हैं। जो समय बीत गया, उसे बदला नहीं जा सकता, पर जो समय हमारे पास है, उसे सँवारा जा सकता है। यदि संभव हो, तो एक बार गाँव आकर अपने माता-पिता से मिल लीजिए।"
पत्र भेजने के कुछ दिन बाद, एक दिन अचानक घर के दरवाजे पर एक कार आकर रुकी। अर्जुन ने दरवाजा खोला तो देखा—विजय खड़ा था!
विजय को देखकर रघुवीर काका की आँखें भर आईं। लेकिन उन्होंने खुद को संभाला और कुछ नहीं कहा।
विजय धीमे कदमों से अंदर आया और माँ-बाप के सामने खड़ा हो गया।
"बाबा…"
रघुवीर काका ने कोई जवाब नहीं दिया।
"बाबा, मुझे माफ कर दीजिए। मैं बहुत बड़ा गलती कर चुका हूँ।"
कमला काकी दौड़कर आईं और अपने बेटे को गले लगा लिया। "बेटा, तू सच में आ गया?"
विजय की आँखों से आँसू बह निकले।
रघुवीर काका थोड़ी देर तक चुप रहे, फिर बोले, "तू आया तो है, पर क्या हमेशा के लिए आया है या फिर से चला जाएगा?"
विजय ने दृढ़ता से कहा, "नहीं बाबा, अब मैं हमेशा के लिए आ गया हूँ। अब मैं आपकी सेवा करूँगा।"
रघुवीर काका की आँखों में नमी थी, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा।
सुमन ने महसूस किया कि उसका प्रयास सफल हो गया था।
अब घर में माहौल बदल चुका था। विजय अब गाँव में ही रहकर अपने माता-पिता की देखभाल करने लगा।
एक दिन, जब रघुवीर काका बरामदे में बैठे थे, सुमन उनके पास आई और बोली, "काका, अब तो आप खुश हैं न?"
रघुवीर काका ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "हाँ बेटी, और ये सब तेरी वजह से हुआ। तूने एक बिखरे परिवार को जोड़ दिया।"
सुमन मुस्कुरा दी। कभी-कभी, बस थोड़ी-सी कोशिश से जिंदगियाँ बदल सकती हैं।
(समाप्त) 🌸
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