सियार और ढोल की कहानी -The Jackal and the Drum – Panchatantra Story

सियार और ढोल की कहानी -The Jackal and the Drum - Panchatantra Story in Hindi

Panchatantra Kahani in Hindi : – सियार और ढोल की कहानी (The Jackal and the Drum)

पंचतंत्र की कहानियाँ अपने सरल लेकिन गहरे संदेशों के लिए जानी जाती हैं। ‘सियार और ढोल’ की कहानी भी इन्हीं में से एक है, जिसमें एक सियार की सरलता, उसकी जिज्ञासा, और अज्ञानता का वर्णन किया गया है। इस कहानी के माध्यम से यह सिखाया जाता है कि बिना पूरी जानकारी के किसी चीज़ के प्रति डर या उम्मीद पाल लेना खतरनाक हो सकता है।

भूखा सियार

किसी समय की बात है, एक घना जंगल था। उस जंगल में एक चतुर लेकिन बेहद भूखा सियार रहता था। वह कई दिनों से भोजन की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था, लेकिन उसे कुछ भी खाने को नहीं मिला। उसके पेट में भूख के मारे जोर-जोर से दर्द हो रहा था। उसने हर जगह भोजन की तलाश की, लेकिन उसे कहीं कुछ भी नहीं मिला।

ढोल की आवाज़

भटकते-भटकते वह जंगल के एक ऐसे हिस्से में पहुंचा जहां पहले कभी नहीं गया था। वहां उसने अचानक एक अजीबोगरीब आवाज़ सुनी, जो बहुत ही तेज और डरावनी थी। सियार डर गया और उसके कदम वहीं थम गए। उसने सोचा, “यह आवाज़ किस चीज़ की हो सकती है? क्या कोई बड़ा और खतरनाक जानवर यहां रहता है?”

उस आवाज़ से भयभीत सियार कुछ समय के लिए छिप गया और सोचने लगा कि आगे क्या करना चाहिए। लेकिन उसकी भूख ने उसे दुबारा उस आवाज़ के स्रोत का पता लगाने पर मजबूर कर दिया।

ढोल का पता लगाना

काफी समय तक उस आवाज़ का अनुसरण करते हुए, सियार एक बड़े पेड़ के पास पहुँचा। वहां उसने देखा कि एक बड़ा ढोल पेड़ की जड़ों के बीच फंसा हुआ था। हवा चलने के कारण ढोल के ऊपर की शाखाएँ हिल रही थीं और उनसे टकराकर ढोल में आवाज़ पैदा हो रही थी।

सियार को समझ में आया कि यह तो सिर्फ एक ढोल है, जो आवाज़ कर रहा है। वह राहत महसूस करने लगा, क्योंकि जो चीज़ उसे पहले डरावनी लग रही थी, वह अब उसे बिल्कुल हानिरहित लगने लगी थी। उसकी जिज्ञासा बढ़ी, और वह उस ढोल के पास गया। उसने सोचा, “अगर यह ढोल इतनी जोर से आवाज़ करता है, तो इसके अंदर जरूर कुछ अच्छा खाने को मिलेगा।”

ढोल को फाड़ने का प्रयास

भूख से मजबूर सियार ने अपने नुकीले दांतों से ढोल को फाड़ने की कोशिश की। उसने अपने पंजों से ढोल को मार-मारकर तोड़ने का प्रयास किया। लेकिन ढोल बहुत मजबूत था और उसे फाड़ना आसान नहीं था। काफी कोशिशों के बाद, वह आखिरकार ढोल का चमड़ा फाड़ने में कामयाब हो गया।

लेकिन जैसे ही ढोल का चमड़ा फटा, सियार को निराशा हाथ लगी। उसके अंदर कोई खाना नहीं था, बल्कि वह बिल्कुल खाली था। सियार की सारी उम्मीदें चूर-चूर हो गईं, और उसे अपनी मूर्खता पर गुस्सा आया।

मूर्खता का अहसास

सियार ने सोचा, “मैं कितना मूर्ख हूँ! मैंने एक ढोल से बड़ी उम्मीदें लगा लीं, जो केवल हवा से आवाज़ कर रहा था। मैंने सोचा था कि इसके अंदर कुछ स्वादिष्ट खाना मिलेगा, लेकिन यह तो बिल्कुल खाली निकला। अगर मैंने पहले ही इस ढोल को अच्छी तरह से देख लिया होता, तो मुझे पता चल जाता कि इसमें कुछ भी नहीं है।”

सियार को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने यह भी सोचा कि वह कितना डरपोक और जल्दबाज था, जिसने बिना जांचे-परखे ही इतनी बड़ी उम्मीद पाल ली। भूख से बेचैन सियार ने उस खाली ढोल को छोड़ दिया और आगे भोजन की तलाश में चल पड़ा।

नैतिक शिक्षा

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी भी चीज़ को पूरी तरह से समझे बिना उस पर कोई धारणा नहीं बनानी चाहिए। बिना सोचे-समझे या बिना पूरी जानकारी के किसी चीज़ के प्रति डर या उम्मीद पाल लेना हमें निराशा या हानि की ओर ले जा सकता है। सियार की तरह अगर हम जल्दबाजी में निर्णय लेते हैं, तो हमें केवल निराशा ही हाथ लगती है।

कहानी के अंत में, सियार की मूर्खता और उसकी हताशा हमें यह सिखाती है कि जीवन में धैर्य और समझदारी बहुत महत्वपूर्ण हैं। हमें किसी भी चीज़ का मूल्यांकन करने से पहले उसकी पूरी सच्चाई को जानना चाहिए। अज्ञात चीजों के प्रति भय या अत्यधिक उम्मीद पालना कभी-कभी हमारे लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इसलिए, किसी भी परिस्थिति में धैर्य बनाए रखना और सही निर्णय लेना ही सफलता का मार्ग है।

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सरिता

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