कहानी: “संगत का पेड़” Hindi Kahani

Akelapan sansar me sabse badi saza - HindiKahaniya.com

कहानी: “संगत का पेड़

Akelapan sansar me sabse badi saza – HindiKahaniya.com

घर के आँगन में रखा वो पुराना लकड़ी का झूला अब भी वैसा ही था—थोड़ा चरमराता, थोड़ा तिरछा, लेकिन यादों से भरा हुआ। उन्हीं यादों में बैठा रमेश आज अचानक बहुत अकेला महसूस कर रहा था। पत्नी की मृत्यु को आठ साल बीत चुके थे, पर आज जाने क्यों वो खालीपन पहले से भी ज्यादा गहरा लग रहा था।

उस सुबह सब कुछ सामान्य था। चाय बनाना, अख़बार खोलना, आँगन में आना—हर काम वही, लेकिन मन बिल्कुल अलग। शायद इसलिए कि पड़ोस में नई फैमिली आई थी, और कल रात देर तक उनके घर में हँसी की आवाज़ें गूँजती रहीं। रमेश उस हँसी को सुनकर बार-बार पत्नी के साथ बिताए दिन याद कर रहा था।

उसी आँगन में दोनों ने सैकड़ों पौधे लगाए थे—गुलाब, तुलसी, रातरानी, बेल—कई पौधे तो पत्नी की तरह ही हँसमुख और खुशबूदार थे।
लेकिन अब ज्यादातर गमले सूखे हुए खड़े थे, जैसे अपने मालिक की उदासी को पी रहे हों।

उस दिन रमेश ने सोचा—“चलो पौधों को पानी ही दे दूँ, शायद मन हल्का हो जाए।”

जैसे ही वो गुलाब के एक मुरझाए पौधे के पास पहुँचा, उसे लगा जैसे पौधा कह रहा हो—
“हम भी अकेले पड़ गए हैं। कोई बात करने वाला ही नहीं।”

रमेश मुस्कुराया—“क्या बात है, मैं भी तो यही महसूस कर रहा हूँ।”

इसी बीच सामने के दरवाज़े पर दस्तक हुई।
रमेश ने जाकर देखा—पड़ोस में रहने वाली छः साल की बच्ची सुहानी खड़ी थी।

“अंकल! मम्मी ने कहा है कि अगर आपको पैकेट ले जाना हो तो मैं मदद कर दूँ। आपको भारी चीज़ें उठाते मुश्किल होती है न?”

रमेश थोड़ी हैरानी से बोला—“अरे नहीं बेटा, कोई काम नहीं है। पर तुम अंदर आओ, बगीचा देखना है?”

सुहानी की आँखें चमक उठीं—“हाँ! मुझे फूल बहुत पसंद हैं।”

दोनों आँगन की ओर चले। सुहानी ने एक सूखे गुलाब के पौधे की ओर इशारा करते हुए कहा—

“अंकल, ये क्यों मरा-मरा है?”

रमेश ने हँसते हुए कहा—“अकेला है न… पानी मिलता है, खाद मिलता है, पर साथी कहाँ?”

सुहानी ने तुरंत दो छोटे गमलों को उठाकर उस गुलाब के पास रख दिया।
“अब ठीक है! अब ये दुखी नहीं होगा। मेरी मम्मी कहती है कि पेड़ों को भी दोस्त चाहिए होते हैं, नहीं तो वो अकेले में डर जाते हैं।”

रमेश चुप हो गया।
उसी बात ने उसे पत्नी की याद ऐसे दिलाई जैसे किसी ने पुरानी डायरी खोल दी हो।

पत्नी भी यही कहती थी—
“पेड़ हो, जानवर हों या इंसान—सबको संगत चाहिए। अकेलापन किसी को नहीं जमता।”

सुहानी थोड़ी देर तक खेलती रही, फिर चली गई।
लेकिन उसके जाते ही रमेश के मन में जैसे नया बीज उग आया था। उसने ठान लिया कि आज इस बगीचे को फिर से जी उठने देना है।

अगले दो दिनों तक रमेश हर पौधे को साफ करता रहा। सूखी पत्तियाँ हटाईं, मिट्टी बदली, और सबसे ज़रूरी—गमलों को एक-दूसरे के पास कर दिया। जैसे सबको एक परिवार बना रहा हो।

इसी बीच उसने देखा कि नींबू के पुराने पौधे में थोड़ा-सा नया हरा उग आया था।
रमेश को पत्नी की कही बात याद आई—

“जब पौधा साथ पा लेता है, तो उसे हार माननी नहीं आती।”

उसी शाम बारिश होने लगी। रमेश बरामदे में बैठकर मौसम का मज़ा ले रहा था। तभी सामने की कुर्सी पर पत्नी की मुस्कान जैसे तैर गई।
जैसे कह रही हो—

“देखो रमेश… पौधे नहीं मरते, अकेलापन मारता है।”

रमेश की आँखें भर आईं।
कुछ बातें कितनी देर से समझ आती हैं…

एक हफ्ते बाद आँगन फिर से खिल उठा था। पौधों में जीवन लौट आया था, और शायद रमेश में भी।

सुबह चाय पीते हुए वह सामने वाले गुलाब को देखकर बोला—

“अरे वाह! कल तक तुम सूखे हुए थे, और आज मुस्कुरा रहे हो!”

जैसे ही उसने गुलाब को छुआ, उसे बचपन की एक घटना याद आ गई—

जब वह छोटा था, उसने एक तोता पाला था।
तोता बहुत शांत रहता था, खाना भी सही से नहीं खाता था।
पर कुछ ही दिनों में वह मर गया।

तभी दादी ने कहा था—
“इसे अकेलापन लग गया था। तोते जोड़ों में खुश रहते हैं। अकेलापन पालतू भी नहीं सहते।”

रमेश तब बच्चा था, समझ नहीं पाया।
आज समझ आया।

उस शाम रमेश ने सामने वाले कमरे की सफाई की।
किताबें, फोटो अल्बम, पत्नी की चुन्नी—सब देखते ही यादें उसके अंदर उमड़ने लगीं।

एक फोटो में पत्नी हँसते हुए पौधों में पानी डाल रही थी।
पीछे रमेश खड़ा था, हाथ में कोयता लिये।

रमेश ने फोटो को बहुत देर तक देखा।
फिर बुदबुदाया—

“तुम्हारे जाने के बाद मैं सूख गया था। पर तुमने तो जाते-जाते भी रास्ता दिखा दिया…”

अगले दिन रमेश ने एक बड़ा फैसला लिया।
उसे लगा घर की दीवारें तभी जीवित होंगी जब उनमें हँसी, आवाजें और इंसान होंगे। उसने सोचा—

“संगत बाँटने से मिलती है, इंतज़ार करने से नहीं।”

उसने अपने मोहल्ले में रहने वाले दो बुजुर्ग दोस्तों को फोन किया और कहा—

“आ जाओ, आज घर में चाय की महक होगी।”

दोनों आ गए।
तीनों ने पुराने दिनों की बातें कीं, पत्नी की यादों पर मुस्कुराया, बच्चों की खामोशियों पर दुख साझा किया।

रमेश ने महसूस किया—
उस पल में, वो अकेला नहीं था।
न ही उसके पौधे अकेले थे।
न उसके दोस्त अकेले थे।

कहते हैं जीवन में सबसे बड़ी दवा है किसी का साथ

रमेश ने इसे प्रत्यक्ष महसूस किया।
अब उसने रोज शाम बच्चों के लिए कहानी–समय शुरू कर दिया।
सुहानी, उसकी दोस्तें, और कई मोहल्ले के बच्चे उसके आँगन में आते।

रमेश उन्हें कहानियाँ सुनाता—
पेड़ों की, पक्षियों की, रिश्तों की…
और बच्चे हँसी से आँगन को भर देते।

एक दिन सुहानी ने गुलाब के पौधे को देखते हुए कहा—

“अंकल, ये तो अब बहुत खुश लगता है!”

रमेश ने मुस्कुराकर कहा—
“हाँ, क्योंकि अब ये अकेला नहीं है… बिल्कुल मेरी तरह।”

धीरे-धीरे रमेश का घर फिर से एक छोटा–सा परिवार बन गया।
पौधे, लोग, हँसी, बच्चों की बातें—सबने मिलकर उस सूनेपन को घोल दिया।

उसने महसूस किया—

अकेलापन कोई बीमारी नहीं, पर इलाज माँगता है।
और वो इलाज है—संगत, प्रेम, और छोटे-छोटे रिश्ते।

कई बार हम सोचते हैं कि हम मज़बूत हैं, अकेले रह लेंगे।
लेकिन दिल चाहे जितना सख्त हो, संगत की ज़रूरत हमेशा रहती है।

जैसे पौधे सूरज और पानी के बिना नहीं जीते,
वैसे इंसान रिश्तों के बिना नहीं जीते।

रमेश के बगीचे में अब दर्जनों फूल खिलते थे—
गुलाब, गेंदा, बेला, रातरानी…

हर सुबह रमेश पौधों से बात करता, और पौधे जैसे मुस्कान से उसका जवाब देते।

कभी-कभी वह पत्नी की तस्वीर के पास बैठकर कहता—

“तुम सही कहती थीं…
पौधे सूखते नहीं, अकेले पड़ जाते हैं।
और इंसान भी।”

उसकी आँखें नम हो जातीं।
पर इस बार आँसुओं में दुख नहीं था—
बचपन की समझदारी, और जीवन की सच्चाई शामिल थी।

कहानी का संदेश

किसी को देखो तो पूछो—
“तुम ठीक हो?”
शायद वो सवाल किसी की जड़ें फिर से हरा कर दे।

क्योंकि—

अकेलापन वाकई दुनिया की सबसे बड़ी सजा है।
और संगत—सबसे बड़ा वरदान।


Picture of सरिता

सरिता

नमस्ते! मेरा नाम सरिता है। मेरी दिलचस्पी कहानियों के जादुई संसार में बचपन से ही रही है। मुझे यकीन है कि हर कहानी में एक नया अनुभव, एक नई सीख और एक अलग संसार छिपा होता है। मेरी वेबसाइट, "हिंदी कहानियाँ," उन सभी कहानियों का संग्रह है जिनसे आपको प्यार, संघर्ष, परिवार, और जीवन की वास्तविकताओं से जुड़ी दिलचस्प कहानियाँ पढ़ने को मिलेंगी। मेरा उद्देश्य केवल कहानियाँ सुनाना नहीं, बल्कि मुझे विश्वास है कि कहानियाँ हमें एक-दूसरे से जोड़ती हैं और हमारे जीवन को और भी खूबसूरत बनाती हैं। आपका इस सफर का हिस्सा बनने के लिए धन्यवाद! चलिए, मिलकर कहानियों की इस दुनिया को और भी खूबसूरत बनाते हैं।