भारत के इतिहास में अकबर और बीरबल की कहानियाँ केवल मनोरंजन के लिए ही नहीं सुनाई जातीं, बल्कि वे राजनीति, कूटनीति, बुद्धिमानी और व्यवहारिक ज्ञान का खजाना भी हैं। बीरबल (असली नाम महेशदास) अकबर महान के नवरत्नों में से एक थे। उनकी हाजिरजवाबी और समझदारी इतनी प्रसिद्ध थी कि देश–विदेश तक उनकी ख्याति पहुँची हुई थी। कहा जाता है कि न केवल भारतवर्ष में, बल्कि विदेशी बादशाह भी उनके कौशल की कहानियाँ सुनकर प्रभावित होते थे।
इन्हीं कथाओं में से एक प्रसिद्ध प्रसंग है — “दूज का चाँद और पूनम का चाँद।” यह कहानी न केवल बीरबल की चतुराई को उजागर करती है, बल्कि ईर्ष्या और चुगली करने वाले लोगों की भी पोल खोलती है।
हिंदी कहानी – दूज का चाँद और पूनम का चाँद – बीरबल की बुद्धिमानी की अनोखी कहानी
अकबर का दरबार और बीरबल की ख्याति
अकबर का दरबार अपने समय का सबसे भव्य और विद्वानों से भरा हुआ दरबार माना जाता था। यहाँ दूर–दराज़ से कवि, शायर, कलाकार, संगीतज्ञ और विद्वान आते थे। बीरबल की ख्याति दरबार में सबसे विशेष थी। उनके चुटीले जवाब, समस्याओं का तुरंत समाधान और कठिन परिस्थितियों में बुद्धिमानी से रास्ता निकालना उन्हें सबके बीच खास बनाता था।
बीरबल की लोकप्रियता केवल हिंदुस्तान तक सीमित नहीं थी। विदेशी यात्री, व्यापारी और दूत जब आगरा के दरबार में आते, तो वे बीरबल की कहानियाँ अपने देश लेकर जाते। धीरे–धीरे उनका नाम पड़ोसी राज्यों और विदेशों तक फैलने लगा।
ईरान के बादशाह का संदेश
एक दिन दरबार में समाचार आया कि ईरान के बादशाह ने अकबर को एक विशेष दूत भेजा है। दूत ने सलाम करके संदेश पढ़ा:
“हिंदुस्तान के महान सम्राट अकबर के वजीर बीरबल की बुद्धिमानी की कहानियाँ ईरान तक पहुँची हैं। मैं चाहता हूँ कि आप अपने वजीर को कुछ समय के लिए मेरे दरबार में भेजें, ताकि मैं उनसे राजनीति और जीवन के रहस्य सीख सकूँ।”
अकबर यह सुनकर प्रसन्न हुए। उन्होंने बीरबल की ओर देखा और कहा:
“बीरबल, अब तुम्हारी ख्याति इतनी दूर तक जा पहुँची है कि ईरान का बादशाह भी तुम्हारे ज्ञान की परीक्षा लेना चाहता है। यह हमारे लिए गर्व की बात है।”
बीरबल ने मुस्कुराकर झुकते हुए कहा:
“जहाँपनाह, यह सब आपके आशीर्वाद का फल है। मैं आपकी आज्ञा से ही वहाँ जाऊँगा।”
अकबर ने बीरबल को विदा करते समय बहुमूल्य वस्त्र, आभूषण और उपहार सौंपे ताकि वह ईरान के दरबार की शोभा बढ़ा सकें।
बीरबल की यात्रा
बीरबल की ईरान यात्रा अत्यंत रोचक रही। वे रथों और घोड़ों के काफ़िले के साथ रवाना हुए। मार्ग में गाँव–कस्बों के लोग उनका स्वागत करते। जगह–जगह उनके सम्मान में मेहमानगिरी की जाती। बीरबल को देखकर लोगों में कौतूहल होता कि यही वह प्रसिद्ध वजीर हैं, जिनकी बुद्धिमानी की कहानियाँ हर जगह सुनाई जाती हैं।
ईरान की सीमा पर पहुँचते ही उनका भव्य स्वागत किया गया। सैनिकों ने परेड की, दरबारी स्वागत के लिए उपस्थित हुए और बीरबल को राजकीय अतिथि की तरह महल तक ले जाया गया।
ईरान का दरबार
दूसरे दिन बीरबल ईरान के बादशाह के दरबार में पहुँचे। दरबार का नजारा देखते ही वे प्रभावित हुए। विशाल स्तंभों से सुसज्जित महल, कीमती कालीन, झूमर और दरबारियों की लंबी कतार। बादशाह ने बीरबल का स्वागत करते हुए अकबर द्वारा भेजे गए उपहारों के लिए धन्यवाद दिया।
“हिंदुस्तानी वजीर बीरबल, आपका स्वागत है। हमने आपके बारे में बहुत सुना है। आज आपसे मिलकर खुशी हुई,” बादशाह ने कहा।
बीरबल ने आदरपूर्वक उत्तर दिया:
“जहाँपनाह, यह सब हमारे सम्राट अकबर की कृपा है कि मुझे आपके दरबार की शोभा बनने का अवसर मिला।”
राजनीति की शिक्षा
कई दिनों तक बीरबल ने ईरान के दरबार में राजनीति, कूटनीति और प्रशासन के विभिन्न रहस्यों पर विचार–विमर्श किया। उनकी हर सलाह बादशाह को बहुत उपयोगी लगी। दरबारियों ने भी बीरबल के ज्ञान की सराहना की।
लेकिन इसी बीच कुछ दरबारी ऐसे भी थे, जिन्हें बीरबल की लोकप्रियता खटक रही थी। उन्हें लगा कि एक विदेशी व्यक्ति दरबार में सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
पूनम और दूज का चाँद
विदाई के दिन ईरान के बादशाह ने दरबार में एक प्रश्न किया:
“बीरबल, आप तो बड़े ज्ञानी हैं। बताइए, मेरे और आपके राजा अकबर की तुलना कैसे करेंगे?”
दरबार में सन्नाटा छा गया। यह प्रश्न कठिन भी था और नाजुक भी। बीरबल ने क्षणभर विचार किया और मुस्कुराकर उत्तर दिया:
“जहाँपनाह, मेरे राजा दूज के चाँद के समान हैं और आप पूनम के पूर्ण चंद्रमा जैसे सुंदर और तेजस्वी हैं।”
बादशाह यह सुनकर प्रसन्न हुए, पर साथ आए कुछ हिंदुस्तानी दरबारी असमंजस में पड़ गए। वे आपस में फुसफुसाने लगे:
“देखा, बीरबल ने हमारे राजा की तुलना एक पतली रेखा जैसे दूज के चाँद से कर दी और ईरान के बादशाह को पूनम के चमकीले चाँद से। यह तो स्पष्ट रूप से हमारे राजा को छोटा दिखाना हुआ!”
दूसरे दरबारी ने जोड़ा:
“हाँ, पूनम का चाँद बड़ा और तेजस्वी होता है, जबकि दूज का चाँद तो मुश्किल से दिखाई देता है। हमें अवश्य ही राजा को इस बात की शिकायत करनी चाहिए।”
चुगली की आग
जब बीरबल वापस भारत लौटे, तो अकबर ने बड़े उत्साह से उनका स्वागत किया।
“बीरबल, तुम्हारे कारण हमारे दरबार की शोभा ईरान तक पहुँच गई है। मैं बहुत प्रसन्न हूँ।”
लेकिन तभी चुगलखोर दरबारी आगे बढ़े और बोले:
“जहाँपनाह, बीरबल ने वहाँ आपकी तुलना दूज के चाँद से की और ईरान के बादशाह को पूनम का चाँद बताया। यह तो आपके गौरव को कमतर दिखाना हुआ।”
यह सुनकर अकबर का चेहरा गंभीर हो गया। उन्होंने अगले दिन बीरबल को बुलाया।
बीरबल की व्याख्या
“बीरबल,” अकबर ने कठोर स्वर में कहा,
“क्या यह सत्य है कि तुमने मेरी तुलना दूज के चाँद से की और ईरान के बादशाह को पूनम का चाँद बताया? क्या तुमने मुझे छोटा दिखाने का साहस किया?”
बीरबल ने विनम्रता से उत्तर दिया:
“जहाँपनाह, यह सब आपके चुगलखोर दरबारियों की अधूरी समझ का परिणाम है। मैंने आपकी तुलना दूज के चाँद से इसलिए की क्योंकि दूज का चाँद धीरे–धीरे बढ़ता है, उसका प्रकाश दिन–प्रतिदिन अधिक होता जाता है। वह निरंतर विकास का प्रतीक है। आप भी उसी प्रकार प्रतिदिन अपने साम्राज्य, पराक्रम और कीर्ति में वृद्धि कर रहे हैं।
दूसरी ओर, पूनम का चाँद एक ही दिन सबसे अधिक चमकता है, फिर घटता–घटता अमावस की रात को बिल्कुल गायब हो जाता है। इसलिए मैंने ईरान के बादशाह को पूनम का चाँद कहा। यह उनके गौरव का प्रतीक अवश्य है, परंतु वह स्थायी नहीं है। जबकि दूज का चाँद भविष्य और आशा का प्रतीक है।”
राजा का निर्णय
अकबर बीरबल की यह व्याख्या सुनकर गहराई से प्रभावित हुए। उन्होंने तुरंत समझ लिया कि बीरबल ने दरअसल उनकी महिमा ही बढ़ाई थी।
“बीरबल, सचमुच तुमने मेरी तुलना दूज के चाँद से करके मेरी महानता को और भी उजागर किया है। मैं गर्व करता हूँ कि मेरे दरबार में तुम्हारे जैसा वजीर है।”
इसके बाद अकबर ने उन चुगलखोर दरबारियों को फटकार लगाई और बीरबल को पुरस्कार देकर सम्मानित किया।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि बुद्धिमानी केवल शब्दों से नहीं, बल्कि दृष्टिकोण से भी होती है। किसी बात को कैसे प्रस्तुत किया जाए, यह सबसे महत्वपूर्ण है। चुगलखोर लोग हमेशा दूसरों की सफलता से जलते हैं, लेकिन सत्य और विवेक अंततः सामने आ ही जाता है।
बीरबल ने हमें यह भी सिखाया कि सच्चा नेता वही है जो निरंतर प्रगति करता है और अपने साम्राज्य को दिन–प्रतिदिन मजबूत बनाता है।
नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
सच्ची बुद्धिमानी वही है, जो कठिन परिस्थिति में भी सम्मान और विश्वास बनाए रखे।