तेनालीराम, जो अपनी चतुराई, हाज़िरजवाबी और समझदारी के लिए प्रसिद्ध थे, विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेवराय के प्रिय मंत्री और दरबार के सबसे तेज़ दिमाग वाले रत्नों में से एक थे। उनकी कहानियाँ केवल हास्य से भरी नहीं होतीं, बल्कि उनमें जीवन की गहरी सीख भी छुपी रहती थी।
एक दिन राजधानी के बाज़ार में अचानक चोरी की घटनाएँ बढ़ने लगीं। सबसे अमीर व्यापारी श्रीधर दरबार में पहुँचा और बोला –
“महाराज! पिछले कई दिनों से मेरे घर से कीमती गहने और पैसे चोरी हो रहे हैं। न जाने यह चोर कौन है, पर वह इतना चालाक है कि पकड़ में नहीं आता।”
यह सुनकर दरबार के सभी मंत्री और गुप्तचर चिंता में पड़ गए। बार-बार चौकसी बढ़ाने के बावजूद चोर का कोई सुराग नहीं मिल रहा था। राजा कृष्णदेवराय ने गहरी नज़र से दरबार देखा और बोले –
“इस रहस्य को सुलझाना अब तेनालीराम का काम है। तुम्हें तीन दिन का समय देता हूँ। अगर तुम असफल हुए, तो तुम्हारी बुद्धि पर मुझे संदेह होगा।”
तेनालीराम ने मुस्कुराते हुए प्रणाम किया और तुरंत काम पर लग गए।
तेनालीराम की योजना
तेनालीराम सबसे पहले व्यापारी श्रीधर के घर पहुँचे। उन्होंने घर का बारीकी से निरीक्षण किया और देखा कि दीवारों और पिछली गलियों में कई ऐसी जगहें हैं, जहाँ से आसानी से कोई अंदर घुस सकता था।
तेनालीराम ने श्रीधर से कहा –
“चिंता मत करो। इस बार चोर अपने आप हमारे जाल में फँस जाएगा। लेकिन मुझे थोड़ी विशेष तैयारी करनी होगी। आज रात मैं यहीं तुम्हारे घर पर ठहरूँगा।”
रात होते ही तेनालीराम ने एक चालाकी भरा नाटक रचा। उन्होंने घर के आँगन में एक साधारण घड़ा रखवाया और सब जगह यह अफवाह फैला दी कि –
“यह घड़ा जादुई है। अगर कोई चोर इसे छुएगा तो इसमें से तेज आवाज निकलेगी और वह तुरंत पकड़ा जाएगा।”
यह खबर जान-बूझकर पड़ोसियों और नौकरों तक फैलाई गई, ताकि यह बात चोर के कानों तक भी पहुँच जाए।
चोर का लालच
आधी रात होते-होते पूरा घर सो गया। मगर तेनालीराम छिपकर एक कोने में बैठ गए और घड़े पर नज़र रखने लगे।
कुछ देर बाद, एक परछाईं धीरे-धीरे आँगन में दाखिल हुई। वह चोर था। उसने घड़े की ओर सावधानी से कदम बढ़ाए और सोचा –
“देखता हूँ, आखिर इसमें कैसा जादू है!”
पहले तो उसने डरते-डरते घड़े को छुआ। कोई आवाज़ नहीं आई।
“अरे! यह तो बस डराने का बहाना है,” उसने मन ही मन सोचा और हँस पड़ा।
उसने फिर से घड़े को छुआ। फिर भी कुछ नहीं हुआ।
“हम्म… लगता है सबको मूर्ख बनाने के लिए यह नाटक किया गया है,” उसने सोचा और वहाँ से भागने ही वाला था।
लेकिन यह वही पल था जिसका इंतज़ार तेनालीराम को था।
चोर की पहचान
अगले दिन तेनालीराम दरबार पहुँचे और सबके सामने आत्मविश्वास से बोले –
“महाराज! मैंने चोर की पहचान कर ली है।”
पूरा दरबार चौंक गया। सब हैरान होकर पूछने लगे –
“कैसे? आपने उसे रंगे हाथ पकड़ा भी नहीं, तो यह कैसे संभव है?”
राजा ने भी उत्सुक होकर पूछा –
“तेनालीराम, बताओ! आखिर तुमने यह रहस्य कैसे सुलझाया?”
तेनालीराम मुस्कुराए और बोले –
“महाराज, मैंने उस घड़े के भीतर गुप्त रूप से विशेष स्याही लगा दी थी। यह स्याही सामान्य रोशनी में दिखाई नहीं देती, लेकिन जैसे ही पानी से हाथ धोए जाएँगे, यह गाढ़े काले रंग में बदल जाती है। मैंने आज सुबह नगर के सभी लोगों को आदेश दिया कि वे दरबार में आकर अपने हाथ धोएँ।”
जैसा उन्होंने कहा था, वैसा ही हुआ। जब सबने हाथ धोए तो एक व्यक्ति के हाथ गहरे काले पड़ गए। वह और कोई नहीं, बल्कि व्यापारी श्रीधर का नौकर ही निकला। लालच में उसने ही चोरी की योजना बनाई थी।
राजा की प्रसन्नता
नौकर को तुरंत दंड दिया गया और चोरी का सामान बरामद हुआ। राजा कृष्णदेवराय ज़ोर से हँस पड़े और बोले –
“तेनालीराम! तुम्हारी बुद्धि सचमुच अद्भुत है। तुमने बिना किसी कठिनाई के चोर को ढूँढ निकाला।”
पूरा दरबार ठहाकों से गूँज उठा और हर कोई तेनालीराम की चतुराई की प्रशंसा करने लगा।
सीख
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि –
- किसी भी समस्या को केवल बल या कठोर दंड से नहीं, बल्कि चतुराई और समझदारी से हल किया जा सकता है।
- झूठ और चोरी का रास्ता हमेशा पकड़ा जाता है।
- ईमानदारी और सच्चाई ही जीवन में सच्चा धन है।






